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विकृतिविज्ञान अस्थिभग्न पूर्ण ( complete ) हुआ है तो अस्थियों पर संलग्न पेशियाँ उनके टुकड़ों को टेढ़ा सीधा कर देती हैं जिसके कारण वे कभी त्वचा के बाहर दिखते हैं और कभी भीतर ही विषम स्थितियों में स्थित हो जाते हैं। यदि समीप में कोई मर्मस्थल ( vital part ) हुआ तो उसे भी क्षतिग्रस्त करके कई प्रकार की हानियाँ कर देते हैं।
अस्थिभग्न होने के पश्चात् सर्वप्रथम रोपण का कार्य विशेष प्रकार की कणन या रोहण अति के द्वारा प्रारम्भ होता है जिसमें वाहिन्य एवं तन्तुरुहीय प्रगुणन तो जैसा अन्यत्र होता है वैसा ही चलता रहता है परन्तु अस्थि अन्तरस्थ ( endosteum ) भाग से तथा पर्यस्थ (periosteum ) के अन्दर से अस्थिरुह् ( osteoblasts ) का प्रचलन होने लगता है। ये सभी अत्यधिक प्रगुणन (pro. liferation ) करते हैं और एक अर्बुदाकारी मृदु अचूर्णीयित अस्थ्याभ ऊति का एक पुंज बन जाता है इसमें स्थान स्थान पर दण्डिकाएँ ( trabecube ) विन्यस्त रहती हैं। इस पुञ्ज में अन्तव्य ( matrix ) सघन ( dense ) तथा काचर (hyaline ) होता है। इसी अन्तव्य में वाहिनियों के चारों ओर अस्थिरुहों का अड्डा जमता है और वे प्रारम्भिक निकुल्या ( Haversian canal ) का निर्माण करते हैं। यह अन्तर्द्रव्य एक कोशान्तरीय पदार्थ है जो अस्थिरहों के द्वारा उत्पन्न होता है इसके निर्माण के लिए भी जीवति ग का होना अत्यावश्यक है। इसी पुञ्ज ( mass ) में हड्डियों के टूटे हुए सिरे न्याविष्ट (embedded ) हो जाते हैं। यह पुञ्ज न केवल अस्थियों के टूटे हुए भागों के सिरों पर ही बनता है अपि तु दोनों के मध्यवर्ती भाग में भी रहता है ताकि रोपण को अन्तिम रूप दिया जा सके। इसी प्रकार की ऊति का पुंज अस्थियों के मज्जक ( medulla ) में भी बनता है। इस नव धातु को प्रारम्भिक या मृदु किणक ( provisional or soft callus) कहते हैं। ____ अस्थ्याभ ऊति के निर्माण और कोशाओं के प्रगुणन का कार्य आघात के दूसरेतीसरे दिन प्रारम्भ होता हुआ देखा जाता है जब तक सप्ताह पूरा होता है तब तक अस्थिरुहीय बहुत सी ऊति बन कर तैयार हो जाती है। जब तक दूसरा सप्ताह समाप्त होता है तब तक जितना भी रक्त उत्स्यन्दन ( effusion ) द्वारा बाहर आ गया होता है उसे सितकोशा समाप्त करके स्वयं भी उस स्थल में बिदा हो जाते हैं । भग्न के बीच वाला भाग अस्थ्याभ दण्डिकाओं ( osteoid trabeculae) द्वारा जिनके अन्दर अस्थिरुह भी रहते हैं, कास्थियों के टुकड़ों तथा संयोजी ऊति की पट्टियों ( strands) द्वारा भरा जाता है। शनैः शनैः चूर्णातु के लवण इस अस्थ्याम ऊति में रोपित ( deposited ) हो जाते हैं। जिसके कारण वह उति धीरे धीरे अस्थि में परिणत हो जाती है।
कुछ प्राणियों में मृदु किणक ( callus ) का चूर्णियन तथा नव अस्थ्याम ऊति निर्माण ये दोनों कार्य एक साथ ही होते हुए देखे जाते हैं परन्तु मनुष्य में अस्थ्याम
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