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ज्वर
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ओर ले जाते हैं । शरीरस्थ जल के अभाव के कारण ही गात्रविक्षेपण हुआ करता है। रोगी की पेशियाँ फड़का करती हैं। ___ अस्थिगत ज्वर के उपरोक्त ६ लक्षण कह देने से ही इतिश्री नहीं हो जाती। अस्थिगत ज्वर से पीडित रोगी पर्याप्त अशक्त होता है। उसकी मांसधातु क्रमशः क्षीण होने लगती है। इसे ज्वर प्रत्येक क्षण बना रहता है। रस, रक्त, मांस और मेदगत ज्वर के उपरान्त इस रोग के लक्षण शरीर में प्रगट होते हैं। अतः इन ज्वरों में व्यक्त लक्षण इस रोग में सदैव या कभी भी देखने में आ सकते हैं । गौरव, उत्क्लेश, अवसाद, अरुचि, रक्तष्ठीवन, दाह, मोह, भ्रम, प्रलाप, पिडिकोत्पत्ति, तृष्णा, अन्तर्दाह, उत्तापाधिक्य, पेशिकोद्वेष्टन, ग्लानि, स्वेदाधिक्य, मूर्छा, दौर्गन्ध्य आदि लक्षण उक्त ६ लक्षणों के अतिरिक्त मिले तो कोई आश्चर्य नहीं ।
मज्जागतचर (१) तमः प्रवेशनं हिका कासः शैत्यं वमिस्तथा । अन्तर्दाहो महाश्वासो मर्मच्छेदश्च मज्जगे ॥ (सुश्रुत) (२) हिका श्वासस्तथा कासस्तमसश्चातिदर्शनम् । मर्मच्छेदो बहिः शैत्यं दाहोऽन्तश्चैव मज्जगे॥(चरक) (३) अन्तर्दाहो बहिश्शैत्यं श्वासो हिध्मा च मज्जगे । ( वृद्धवाग्भट )
इस ज्वर के वर्णन में यद्यपि रोगलक्षण तो बहुत कम दिखलाये गये हैं पर वे सभी बहुत गम्भीर स्वरूप के हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि मजागत ज्वर अन्य अनेक ज्वरों की अपेक्षा बहुत अधिक कष्टसाध्य वा असाध्य रोग है। इसमें रोगी को ऐसा ज्ञात होता है मानो कि वह अन्धकार में प्रविष्ट होता जा रहा हो और प्रकाश उससे छीना जा रहा हो । यह एक मनोवैज्ञानिक अवस्था है तथा रक्तधातु की कमी या रक्त में से जल के अधिक परिमाण में चले जाने के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ करती है। दूसरी कठिन अवस्था हिक्का की है । जिस रोगी को हिचकी का उपद्रव आरम्भ हो जावे तथा साथ में अनेक गम्भीर लक्षण भी हों उसका तो फिर अल्ला ही बेली ( ईश्वर ही रक्षक) होता है।
सुश्रुतोक्त पाठ में 'शैत्यं वमिस्तथा' के स्थान पर यदि 'शैत्यं बहिस्तथा' पढ़ा जावे तो अन्य दोनों आचार्यों के साथ उसकी संगति बैठ जाती है, वमन क्रमानुक्रम से रह सकती है पर यहाँ बहिः शैत्य और अन्तर्दाह ये दो लक्षण अधिक बलवान् हो जाते हैं। हमने अनेक ऐसे रोगी देखे हैं जो उपर से बिल्कुल ठण्डे दिखलाई पड़ते हैं पर जब थर्मामीटर लगाकर देखा गया तो उन्हें तापांश १०४ या उससे भी ऊपर निकला। रोगी निरन्तर चिल्लाता है कि वह दाह से मरा जाता है उसे कोई गर्म दवा न दी जावे। पोरा नामक ग्राम का वासी ख्वाजबख्श २५ वर्ष से बीमार है। उसे थोड़ा बहुत ज्वर बना रहता है । रसगत से रक्तगत, फिर मांसगत, मेदोगत, अस्थिगत होता हुआ अब उसे मज्जागत ज्वर आता है। दो दिन पूर्वतक हमारी चिकित्सा रही है। ख्वाजबख्श की अवस्था ६० वर्ष से उपर है। डाक्टरों ने उसका टी. बी. का सम्पूर्ण इलाज करके छोड़ दिया न तो वह मरा और न उसका कष्ट दूर हुआ। आजकल वह अन्तर्दाह और बहिः शीत से परेशान रहता है । श्वास की गति बढ़ी हुई है यहाँ तक कि वह सश
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