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विकृतिविज्ञान यः स्यादनियतात्कालाच्छीतोष्णाभ्यां तथैव च । वेगतश्चापि विषमो ज्वरः स विषमः स्मृतः॥ जो ज्वर अनियतकालिक है और शीत वा उष्ण वेग के साथ उत्पन्न होता है वह विषम ज्वर कहलाता है।
इसी विषमज्वर के सन्तत, सतत, अन्येशुष्क, तृतीयक और चातुर्थक ५ भेद होते हैं । सुश्रुत ने धातुओं की दृष्टि से भी इनका विचार किया हैसन्ततः रसरक्तस्थः सोऽनेयुः पिशिताश्रितः । मेदोगतस्तृतीयेह्नि त्वस्थिमज्जगतः पुनः ।।
कुर्याच्चतुर्थकं घोरमन्तकं रोगसंकरम् ।। सन्तत रसधातु में सतत रक्तधातु में, अन्येचुष्क मांसधातु में, तृतीयक मेदो धातु में और चातुर्थक अस्थि और मजा धातु में स्थित रहता है । विषमज्वर को प्राचीनों ने घोर अर्थात् कष्टकारक, अन्तक अर्थात् यम के समान मारक तथा गम्भीरस्थान में होने से, चिरक्लेशदायक रहने से अन्य अनेकों रोगों को उत्पन्न करने में समर्थ होता है। अचिकित्सित विषमज्वर वास्तव में घोर और अन्तकारी ही होता है। संसार को मृत्यु संख्या का आज भी एक तिहाई इसी की भेंट हो जाता है। इसको रोकने का उपाय सहज होते हुए भी कालान्तर से यह बहुत भयानक और कष्टदायक माना जाता रहा है। अब हम विषमज्वर के पाँचों भेदों का यथार्थवर्णन उपस्थित कहते हैं
सन्ततज्वर स्रोतोभिर्विसृता दोषा गुरवो रसवाहिभिः। सर्वदेहानुगाः स्तब्धाः कुर्चते सन्ततज्वरम् ।। दशाहं द्वादशाहं वा सप्ताहं वा सुदुःसहः । स शीघ्रं शीघ्रकारित्वात् प्रशमं याति हन्ति वा ।। कालदूष्यप्रकृतिभिर्दोषस्तुल्यो हि सन्ततम् । निष्प्रत्यनीकं कुरुते तस्माज्शेयः सुदुःसहः ।। यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषञ्चानिलादयः । युगपञ्चानुपद्यन्ते नियमात् सन्तते ज्वरे ।। सशुद्धथा वाप्यशुद्धया वा रसादीनामशेषतः । सप्ताहादिषु कालेषु प्रशमं याति हन्ति वा ।। यदा तु नातिशुध्यन्ति न वा शुध्यन्ति सर्वशः। द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा ।। विसर्ग द्वादशे कृत्वा दिवसेऽव्यक्तलक्षणः । दुर्लभोपशमः कालं दीर्घमप्यनुवर्तते ।। इति बुद्ध्वा ज्वरं वैद्यः सन्ततं समुपाचरेत् । क्रियाक्रमविधौ युक्तः प्रायः प्रागपतर्पणैः ।। उपरोक्त ८ श्लोकों में भगवान् आत्रेय ने निम्न विषय समझाने का यत्न किया है१. सन्तत ज्वर कैसे उत्पन्न होता है ? २. सन्तत ज्वर के प्रशमन या हनन की मर्यादा क्या है ? ३. सन्तत ज्वर इतना दुस्सह क्यों है ? ४. सन्तत ज्वर में दोष कहाँ कहाँ प्राप्त होते हैं ? ५. सात, दश या बारह दिन में सन्ततज्वरी ठीक होता है या मरता है इसका
रहस्य क्या है ? ६. सन्तत ज्वर दीर्घकालानुबन्धि ज्वर में कैसे बदल जाता है ? ७. सन्तत ज्वर में अपतर्पण करने की आवश्यकता क्या है ?
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