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सप्तम अध्याय ज्वर
ज्वर प्राणीमात्र का एक सर्वसामान्य रोग है । इसके विनाशक परिणामों से आज सारा संसार त्रस्त है । इसके आज अनेकों रूप प्रगट हो रहे हैं और आज यह संसार में मनुष्य की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बन गया है ।
उवर नामक विकार में स्वेदावरोध, सन्ताप ( rise of temperature ) और सर्वाङ्गग्रह ये तीनों रोगलक्षण एक साथ देखे जाते हैं
स्वेदावरोधः सन्तापः सर्वाङ्गग्रहणं तथा । युगपद्यत्र रोगे च स ज्वरो व्यपदिश्यते ॥
किसी भी रोग में सन्ताप का होना एक सर्वसाधारण लक्षण है उसे ज्वर नाम से पुकारने की अपेक्षा सन्ताप नाम से पुकारना अधिक शास्त्रीय है। ज्वर में स्वेदनाश, तापाधिक्य और शरीरगत वेदना ये तीन सामान्यतया पाये जाते हैं विशिष्टतया इनका आधिक्य या अभाव भी लिया जा सकता है ।
ज्वरोत्पत्ति के सम्बन्ध में एक प्राचीन अनुश्रुति चली आती है कि जब दक्ष प्रजा -
*वक्तव्य — ज्वरोत्पत्ति के सम्बन्ध में यह एक पुरानी कथा है। पुराणों के ताले बन्द हैं उनके भीतर क्या है जानने के पहले ताली चाहिए जिसे गुलामी और परस्पर द्वन्द्व के हजारों वर्षों में हम अज्ञान के सागर में फेंक चुके हैं अतः पौराणिक गाथाओं का जो रहस्य है वह समझना कठिन है । दक्षप्रजापति का असुरों को न मारना अशान्ति उठती रहने देना, भगवान् शङ्कर का शान्तिव्रत में आसीन होना, शाङ्कर भाग को यज्ञ में प्रजापति द्वारा न दिया जाना, व्रतपूर्ण होने पर शङ्कर का तीसरा नेत्र खोल क्रोध से वीरभद्र का जन्म जिसके द्वारा असुरों का संहार किया जाना तथा यज्ञ का विध्वंस होना फिर देवताओं द्वारा प्रार्थना करनेपर शिव का सन्तुष्ट होकर वीरभद्र को ज्वर रूप में रहने का आदेश देना । जन्म मृत्यु के समय तथा अन्य अपचार करने वालों में इसका प्रादुर्भाव होना यह सब कपोल कल्पित मौर्य इसलिएन हीं है कि इनका वर्णन चिकित्सा के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ में हुआ है जिसका उपदेश विश्व के माने हुए विद्वान् भगवान् पुनर्वसु आत्रेय ने अपने श्रीमुख से किया है । इतने उच्च ग्रन्थ का निर्माण इस गल्प में विश्वास करता था यह नहीं कहा जा सकता। इसके पीछे अवश्य कोई सारगर्भित तत्त्व छिपा हुआ है ।
प्रशान्त महासागर के बीकिनी टापुओं के बीच में युनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका के वैज्ञानिकों ने जो एटम या हाइड्रोजन बमों के परीक्षण किये उसका परिणाम हजारों मील दूर जापान तक पहुंचा। वहां रैडियोऐक्टिव कणों से युक्त वर्षा हुई और लाखों रुपये की बहुमूल्य मछलियां मर गई । जब एक बम का इतना घातक परिणाम हो सकता है तो सम्भव है रुद्र नामक घोर अशान्ति के प्रकटायक शङ्कर ने क्रुद्ध होकर किसी विशेष शक्ति को प्रकट किया हो जिसने असुरों का विनाश और दक्ष यज्ञ का विध्वंस किया पर जब शिव नामक परम शान्ति के निधान शङ्कर ने लोकोपकारक रूप सम्हाला तो उसने वह माया समेट ली ।
पर उसका परिणाम प्राणियों पर हुआ और वह निरन्तर होता चला आता है । प्राणी जब पैदा होता है या मरता है अथवा कुपथ्य सेवन करता है तो उसको ज्वर अवश्य होता है । वरभद्र नामक किसी भयङ्कर एटौमिक या उसी प्रकार की किसी शक्ति की उत्पत्ति के उपरान्त विश्व में ज्वर को सृष्टि हुई हो यह असम्भव कल्पना नहीं है । - ( लेखक कृत चरकविमर्श से )
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