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'पुनर्निर्माण
२६६ यदि दशा में कोई परिवर्तन न हो तो एक ही जीव के एक भाग में स्थित अति को निकाल कर दूसरे भाग में प्रतिरोपित किया जा सकता है या एक जीव की उस स्वस्थ ऊति को किसी दूसरे जीव में भी प्रतिरोपित किया जा सकता है और रोपण का प्रतिरोपण भी एक सुगम साधन बन सकता है। वे कौन शर्ते हैं जिनका पालन करना नितान्त आवश्यक है कि प्रतिरोपण हो सके ? इसका समाधान यह है कि जब एक ऊति दूसरे स्थान पर ले जाई जावे तो सर्वप्रथम उस ऊति को अतीव कोमलता के साथ तथा अति शीघ्रता से उठाया जावे ताकि उसकी सजीवता स्थिर रहे दूसरे जहाँ उसे ले जाना है वहाँ उसे पूर्ण सम्बद्ध कर दिया जावे, उसका तापांश बराबर ठीक रहे तथा इस सम्पूर्ण क्रिया काल में पहले या पीछे किसी प्रकार की अशुद्धि न होने पावे जिससे वहाँ उपसर्ग उत्पन्न हो जावे। इन शर्तों का पालन करने से प्रथम रोपण द्वारा ही वह ऊति प्रतिरोपित हो जावेगी। उसका पोषण लस के द्वारा होगा जो उसके तल से निकलेगा और यह तब तक होगा जब तक रक्तवाहिनियाँ इसका सम्बन्ध अन्य भागों से नहीं कर देतीं। ___ जो ऊतियाँ सबसे कम समंगीकृत होती हैं तथा जो बहुत कम पोषण चाहती हैं सर्वाधिक सरलता से प्रतिरोपित हो जाती हैं। प्रत्येक प्रतिरोप (graft) की सफलता उतनी ही शीघ्रतापूर्वक होती है जितनी शीघ्रतापूर्वक वह अपना रक्तसंवहन चालू करने में समर्थ होती है। इतना सब होने पर भी यह कदापि नहीं भूलना होगा कि अत्यधिक विशिष्ट ग्रन्थियों के प्रतिरोप कुछ काल तक सजीव रहते हैं और अपना प्रभाव दिखाते हैं पर कुछ काल पश्चात् धीरे धीरे मृत्यु उन्हें अपने पाश में जकड़ लेती है और वे पुनर्चुपित हो जाते हैं।। ___ कौन ऊति कितने समय में प्रतिरोपित हो जाती है इसका विचार करने से ज्ञात होगा कि अधिच्छद ( epithelium ) एक ऐसी ऊति है जो सबसे जल्दी प्रतिरोपित हो जाती है। इसी आधार पर त्वचा का प्रति रोपण किया जाता है जिसमें एक स्वस्थ कणन ऊति युक्त धरातल पर त्वचा का उपरिष्ठ भाग ( superficial part of the rete ) छोटे छोटे भागों में करके प्रतिरोपित कर दिये जाते हैं। नीचे से जो स्राव निकलता है पहले तो उसके द्वारा ये त्वचा खण्ड परिपोषित होते हैं ये बढ़ते तथा उस धरातल से अभिलग्न हो जाते हैं और फिर वे कुछ केन्द्र बना लेते हैं जहाँ से अधिच्छद का बढ़ना और फैलना प्रारम्भ हो जाता है इस प्रकार कणन ऊति के ऊपर नवीन त्वचा उत्पन्न कर दी जाती है। पर यह चर्म-रोपण-कार्य व्रणवस्तु के संकोचन के समय ही किया जायगा तब तो ठीक है अन्यथा व्रणवस्तु में टूट जाने की प्रवृत्ति हो सकती है।
कास्थि और पर्यस्थि जब वे नई नई ही हो अर्थात् शैशव वा तारुण्यकालीन हो तब उनका भी प्रतिरोपण सरलतया हो जाता है। अस्थियों के छोटे छोटे टुकड़ों का प्रतिरोपण भी उसी प्रकार सरल होता है। अस्थि प्रतिरोपण की क्रिया आधुनिक अभिघटन शल्य विज्ञान ( plastic surgery ) की एक साधारण घटना बन गई है।
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