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पुनर्निर्माण
२६३ एक ही घनास्र में से कई कई सुरंगें बनती हुई देखी जाती हैं। कहीं कहीं जहाँ यह सुरंगीकरण की क्रिया नहीं देखी जाती है वहाँ पर वाहिनी का मुख पूर्णतः बन्द हो जाता है और वह वाहिनी एक तान्तव रजु बन जाती है। अति प्रफुल्लित सिराओं ( varicose veins ) में अन्तःक्षेपण ( injection ) के द्वारा प्रक्षोभक पदार्थ पहुँचाया जाता है ताकि वहाँ एक घनास्त्र बन जावे और सिरा को तान्तवरजु में परिणत कर दे।
हृत्कृपाटों ( valves of the heart)में व्रणशोथ होने पर उनमें भी समङ्गीकरण की क्रिया होती है और वहाँ तान्तव ऊति बनती है जिसके संकोच करने से उसका स्वरूप विकृत हो जाता है और कपाट पल्लव ( valve flaps ) संयुक्त हो जाने से या तो द्वार अत्यधिक संकुचित हो जाता है जिसे संनिरोधोत्कर्ष ( stenosis ) कहते हैं या वह चौड जाता है जिसे अकार्यकरता (incompetense ) कहा जाता है।
पुनर्जनन द्वारा रोपण-पुनर्जनन का अर्थ है पुनरुत्पत्ति । जो उति एक बार क्षतिग्रस्त हो चुकी है उसकी पुनरुत्पत्ति को पुनर्जनन ( regeneration ) कहा जाता है। पर क्या सब शारीरिक ऊति और धातुएँ पुनरुत्पन्न की जा सकती हैं ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि नहीं । केवल वे ऊतियाँ जो वर्धन (growth ) में लगी रहती हैं उनकी पुनरुत्पत्ति हो सकती है पर जो कार्य में लगी रहती हैं वे बहुत कम पुनरुत्पन्न होती हैं। मनुष्य और स्त्रियों में रक्त के कोशाओं की पुनरुत्पत्ति देखी जाती है तथा स्त्रियों के गर्भाशयान्तश्छद (endometrium ) का प्रतिमास पुनर्जनन होता है। रक्त और गर्भाशय की अन्तश्छद वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं अतः प्रकृति ने इनका पुनर्जनन समय समय पर करना आवश्यक समझा है।
रचना की दृष्टि से क्षुद्र प्राणियों में पुनर्जनन की डट कर क्रिया होती है। स्फीत कृमि के मुण्ड से २० फीट लम्बा कृमि तैयार होना इसका उदाहरण है। उच्चवर्गीय प्राणियों में पुनर्जनन बहुत कम होता है ।
कुछ अंगों में जहाँ पुनर्जनन नहीं होता तान्तव ऊति का निर्माण होता है। यह अति उस अंग की क्रिया को सम्पन्न करने में असमर्थ होती है क्योंकि यह तो एक स्थानपूरिका ऊति है। इसका परिणाम यह होता है कि अंग की कार्यकर शक्ति कम हो जाती है। ___ अत्यन्त विशिष्ट ( highly specialised ) ऊतियों में पुनर्जनन न होकर तन्तूस्कर्ष ही होता है। जो उति अत्यन्त भिन्नित (differentiated ) हो जाती हैं उनमें तन्तूत्कर्ष ही देखा जाता है। पर जो उति भ्रौण ( embryonic ) होती हैं और जिनका भिन्नन अल्प होता है उनमें पुनर्जनन हो जाता है। रक्त और गर्भाशयान्तश्छद को छोड़ जिन ऊतियों में पुनर्जनन मिलता है उनमें पूर्णतः पूर्व क्रियाशक्ति लौट आती हो यह सम्भव नहीं है। पुनर्जनन अर्थात् रस्सी में गांठ । रस्सी में गांठ लगने पर उससे कार्य तो हो सकता है पर एकसूत्रता नहीं रह पाती। क्रिया शक्ति कुछ न कुछ घट जाती
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