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पुननिर्माण
२८५ रक्ताभरण तथा सामान्य दशा में (generalised condition ) का परिणाम एक सा होता है। ___यदि किसी स्थान का पीड़न सहसा दूर कर दिया जावे तो वहाँ रक्ताभरण होने लगता है। क्योंकि पीड़न के हास से वाहिनियों के अन्दर के पीड़न का सन्तोलक बाह्य पीडन समाप्त हो जाता है अतः उनकी प्राचीरें फट जाती हैं। जलोदरी या उरस्तोयी का द्रव सहसा निकाल देने से जल के पीड़न से दबी हुई सिराएँ एक दम फूलने के प्रयत्न में अति विस्तीर्ण (over distended) हो कर विस्फोट (burst) कर जाती हैं।
इसी प्रकार कुछ देर से भरे हुए मूत्राशय ( bladder ) का सहसा बस्ति प्रवेश (catheterisation ) करने से मूत्र में विशुद्ध रक्त भी आता हुआ देखा जाता है
और मृत्यु तक हो जाती है। मस्तिष्क के विसंपीड़न ( cerebral decompression ) में भी यह भय रहता है ।
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षष्ठ अध्याय
पुनर्निर्माण ( Repair ) व्रणशोथ के वर्णन में यथास्थान हमने विविध उतियों का किस प्रकार पुनर्निर्माण होता है उसे स्पष्ट कर दिया है परन्तु यहाँ हम इस विषय को विशेष रूप से ले रहे हैं ताकि इसका आवश्यक ज्ञान एक ही स्थान पर मिल सके।
जीर्ण या विनष्ट हुई ऊतियों या धातुओं की क्रिया यथासम्भव पुनः प्राप्त की जावे इस अभिप्राय से उनका जो पुनर्जनन होता है वह पुनर्निर्माण या जीर्णोद्धार कहकर पुकारा जाता है। यह जीर्णोद्धार रचना-सापेक्ष होता है। अर्थात् यदि प्राणी के निर्माण में परमेश्वर ने अधिक शक्ति व्यय नहीं की और उसकी रचना साधारण रही तो उसके अंग-प्रत्यंग का जीर्णोद्धार ( पुनर्निर्माण) भी शीघ्र ही तथा ज्यों का त्यों हो सकता है। एक स्फीत कृमि ( tape worm ) के मुख को छोड कर यदि काट दिया जाय तो पुनः २० फीट लम्बा स्फीत कृमि मुख से तैयार हो जाता है। परन्तु यदि किसी व्यक्ति की अंगुली काट दी जावे तो वह पुनः नहीं बनती। अंगुली की रचना जटिल है तथा विशिष्ट है इस कारण इसका जीर्णोद्धार उस प्रकार का नहीं होता जैसा हम चाहते हैं और अब उस कटी हुई अंगुली के द्वारा होने वाला कार्य भी पूर्ण नहीं हो सकता। हाँ अंगुली के कटे हुए धरातल का पुनर्निर्माण अवश्य हो जाता है जिससे कटे हुए स्थल पर व्रणवस्तु (scar tissue ) बन जाती है। हमारे शरीर में
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