________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८४
विकृतिविज्ञान ___ आन्त्र में निम्न कारणों से सिरा दब कर स्थानिक निश्चेष्ट रक्ताभरण का कारण बन सकती है:
१. हर्निया के स्यून ( sac ) में तान्तव ऊति द्वारा सिरा का पीड़न । २. कोष्ठावर्तन ( volvulous) के कारण आन्त्र में ऐंठन ( twist ) पड़ जाना। ३. अन्त्रान्त्र प्रवेश (intussusception) में पीड़नाधिक्य (compression)
होने से । ४. किसी अर्बुद या कोष्ठ (cyst) के अपने अक्ष पर घूम जाने (twisting of a tumour or cyst) से अथवा किसी घनास्त्र द्वारा सिरामुख बन्द हो जाने से भी निश्चेष्ट रक्ताभरण हो सकता है।
सिरा के अवरुद्ध हो जाने पर भी जब धमनी उस अंग को यथापूर्व रक्त प्रदान करती रहती है तो वहाँ की केशिकाओं में रक्त का पीडन बढ़ जाता है पर चूंकि स्थिर रक्त ने उन्हें दुर्बल बना दिया रहता है, ये कुछ चूने लगती हैं और फिर फट जाती हैं। उस अङ्ग का रङ्ग गहरा बैंगनी लाल (deep purplish red ) हो जाता है जो धातुओं के मृत हो जाने पर काला पड़ जाता है। क्योंकि इतने थोड़े काल में सह पार्श्विक संवहन ( collateral circulation ) नहीं हो पाता ।। ___यदि स्थानिक रक्ताभरण धीरे धीरे होता है तो स्थानिक शोथ, विशेष कोशाओं का दुष्पोषण तथा विषता (poisoning ) जारी रहने से अङ्गका उपसर्ग के प्रति रोध ( resistence ) घट जाता है जिससे धरातलीय प्रदेश में विद्रधि भी हो जाती है। ये अवस्थायें 'टाँगों में विशेष कर उत्ताना ( saphenous ) सिरा में मिलती हैं। इसके परिणामस्वरूप वहाँ उत्फौल्य या प्रगण्डता (varicosity ) देखी जाती है। जो बहुत देर खड़े रहते हैं या चलने का कार्य करते हैं उनमें यह बहुत मिलती है। सभार गर्भाशय (gravid uterus ) का भार पड़ने से भी यह हो जाती है। यकृ. दाल्युत्कर्ष या याकृत तन्तूत्कर्ष के कारण अन्तर्याकृत प्रतिहारिणी सिरा की शाखाओं में रोक होने से प्लीहा तथा महास्रोत में भी रक्ताभरण हो जाता है। यह रोक धीरे धीरे होने से प्रतिहारिणी एवं सांस्थानिक सांघातिक जालाकृत (portal& systemic anastomotic) सिरा मार्गों का विस्फार प्रारम्भ हो जाता है। यह विस्फार अधरान्त्रिकी ( inferior mesentric) एवं गुद ( haemorrhoidal ) सिराओं में विशेष मिलता है जिससे अर्श विकार होने की सम्भावना रहती है। जब अभिस्तार ( dilatation) आमाशयिक सिराओं में होते हैं तो अन्नप्रणालीय उत्फुल्ल (oesopbageal varices ) मिलते हैं। नाभि के चारों ओर भी वक्रसूत्र ( tortuous bands ) मिलते हैं । महास्रोत की सिराओं में निश्चेष्ट रक्ताभरण होने से आमाशय की उपश्लैष्मिक शाखाएँ फट जाती हैं और रक्तवमन ( haemetemesis ) या आन्त्र में रक्तातीसार ( melaena ) कर सकती हैं।
उदरच्छद में जल भरने से प्रायः जलोदर हो जाता है अतः स्थानिक निश्चेष्ट
For Private and Personal Use Only