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रक्तपरिवहन की विकृतियाँ
२७७ रोगों में एक फुफ्फुसीय ऋणास्र भी यह हो सकता है। जब हृदय में द्विदल द्वारीय सन्निरोध ( mitral stenosis ) होता है तब यह रोग देखा जा सकता है। द्विदलीयप्रतिप्रवाहन ( mitral regurgitation ) में भी यह मिल सकता है। इन दोनों द्विपत्रकीय रोगों में अलिन्द के अन्दर आतंचन (रक्तस्कन्दन) होता है जिसके कारण अन्तःशल्यों का निर्माण होता है फुफ्फुसाभिगा धमनी ( pulmonary artery ) का दाढ्यं ( atheroma) भी इस प्रवृत्ति को बढ़ाता है। कभी कभी दीर्घोत्ताना सिरा ( saphenous vein ) के घनास्र के खण्ड खण्ड होकर बह आने से भी यह देखा जा सकता है। ये ऋणास्त्र फुफ्फुसों के बाह्य एवं अधःखण्डों में मिलते हैं। इनका व्यास ३" से लेकर पूरे फुफ्फुस-खण्ड तक हो सकता है। ये रङ्ग में अकाल रक्त होते हैं, शुष्क दृढ और किनारीदार होते हैं तथा अनेक और युगपच्चलित ( confluent ) होते हैं। ___ इनको देख कर कभी कभी अर्बुदों का भान होता है। परन्तु अर्बुद का रङ्ग, आकार, स्थिति और उत्पन्न होने की दशा को देख कर दोनों को अलग अलग किया जा सकता है। ___ कभी कभी यकृत् के ऋणास्र को देख कर फुफ्फुसपाक में उत्पन्न होने वाले संपीडन ( consolidation in pneumonia ) का भी अनुमान हो सकता है । किन्तु दोनों का भेद सरलता से आँका जा सकता है। आगे चल कर इसके कारण अधःस्थित फुफ्फुसपाक ( hypostatic pneumonia ) उत्पन्न हो जाता है अतः फिर भेद नहीं किया जा सकता।
अण्वीक्ष द्वारा देखने से प्रभावित भाग अत्यधिक लाल और रक्तपूर्ण (congested ) दृष्टिगोचर होता है। केशिकाओं के अतिरिक्त फुफ्फुस के वायुकोशाओं (alveoli ) के अन्दर भी रक्त के लालकण पहुँच जाते हैं। फुफ्फुस की अन्तरालीय उति ( interstitial tissue ) में भी वे देखे जाते हैं।
फुफ्फुसों में ऋणास्र का कारण फुफ्फुसाभिगा धमनी में होकर सूक्ष्म अन्तःशयों का प्रवेश है। यदि बड़े बड़े अन्तःशल्य होने से फुफ्फुस के मुख पर ही अवरोध उत्पन्न हो जावे तो प्रायः ऋणात्र बनने से पहले ही मृत्यु हो जाती है। उस समय मृत्यूत्तर परीक्षा करने पर फुफ्फुस में कोई परिवर्तन नहीं मिल सकता। इस दशा को ऋणास्त्रहीन फौफ्फुसिक अन्तःशल्यता (infarctless pulmonary embolism) कहा जाता है। उदर पर शस्त्रकर्म होने के उपरान्त इसकी आशङ्का प्रायः बढ़ जाया करती है।
यकृत् के ऋणास्त्र ये ऋणास्त्र लाल रङ्ग के छोटे तथा चतुष्कोणीय होते हैं। इनका मूलकारण शरीरस्थ कोई भी पूया ( sepsis) हो सकती है। आन्त्रपुच्छपाक इनका मुख्य हेतु देखा जाता है। इसी के कारण इन ऋणात्रों के साथ प्रतिहारिणी पूयरक्तता ( portal pyemia) देखी जाती है जिसके कारण कई विधियाँ बन जाती हैं।
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