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विकृतिविज्ञान
ऋणास्त्र - प्रदेश ( Infarction )
किसी धमनी के अवरोध से जो दृष्ट परिणाम उससे सिञ्चित धातु के जिस भाग पर देखे जाते हैं वह भाग ऋष्णास्रप्रदेश कहलाता है । आघात - प्राप्त उस अङ्ग को ऋणात्र भी कह सकते हैं। कल्पना में तो ऋॠणात्र पूरे अङ्ग में भी देखे जा सकते हैं परन्तु व्यवहार में उतने बड़े ऋणात्र नहीं मिलते और जब तक कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो व्यक्ति विशेष की गतिस्थैर्य ( shock ) के कारण मृत्यु हो जाती है ।
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किसी केशिका के अन्दर अन्तःशल्य के प्रवेश कर जाने से उसमें रक्तसंवहन नहीं हो सकता और उसके द्वारा अभिसिञ्चित प्रदेश रक्तरहित ( ऋण-रहित अस्र - रक्त ) हो जाता है और वह ऋणास्त्र कहलाता है । केवल वृक्कों को छोड़ कर जहाँ उनके प्रवरों ( capsules ) में भिन्न रक्तवाहिनी अभिसिञ्चन करती है । शेष सब स्थानों पर ऋणास्त्र का ज्ञान उस अङ्ग के ऊपरी धरातल से हो जाता है ।
प्रत्येक ऋणास्त्र- प्रदेश का आकार शङ्क ( cone ) के समान होता है । उसका आधार भाग अङ्ग विशेष का बाह्य धरातल होता है और शीर्ष भाग धमनी का अवरोध - स्थल | इस प्रकार के शङ्काकारी प्रदेश प्लीहा में विशेष मिलते हैं । आकार इस बात पर और निर्भर करता है कि अवरोधस्थल से जाने वाली वाहिनियाँ किस दिशा में जाती हैं । वृक्कों में वे मूलधमनी के समकोण पर निकलती हैं अतः ऋणात्र प्रदेश चतुष्कोणाकार होता है ।
जैसे ही किसी धमनी के रक्तसंवहन में अकस्मात् अवरोध होता है वैसे ही उस स्थान से आगे रक्त का जाना बन्द हो जाता है और रक्त का पीड़न घट जाता है । अतः उस प्रदेश में रक्तपीडनजन्य शूल तक नहीं मिल सकता । परिणाम यह होता है कि रक्तपीडन घट जावेगा और धमनी से सिरा की ओर रक्त जाने की अपेक्षा उलटा सिरा से धमनी की ओर रक्त लौटने लगेगा । इसी समय उस प्रदेश में जालकारिणी वाहिनियों ( anastomotic arteries ) से भी रक्त आ जाता है । इन सब कारणों से वहाँ पर रक्ताधिक्य ( congestion ) हो जाता है । और रक्त स्थिर हो जाता है ।
रक्त की इस स्थिरता तथा केशिकीय रक्तपीड़न के कम हो जाने से रक्त रस धातुओं की ओर बढ़ने लगता है । आगे चल कर अजारकता ( anoxaemia ) के कारण जब केशिकीय अन्तश्छद ( capillary endothelium) नष्ट हो जाती है तथा वे स्वयं फट जाती हैं तो रक्त के लालकण तथा रक्तरस का प्रवाह वाहिनी - प्राचीरों के बाहर होने लगता है अतः प्रारम्भिकतम अवस्थाओं में सभी ऋणात्र गहरे लाल बैंगनी रङ्ग के तथा शोथयुक्त होते हैं । ऋणास्त्रप्रदेश अन्य क्षेत्र से कुछ ऊँचा उठ जाता है । इसके कारण अङ्ग के ऊपर का प्रावर कुछ तन जाता है और इसके कारण उसमें अत्यधिक पीडा होती है । फुफ्फुस और प्लीहा जैसे गतिमान् अङ्गों में ऋणास्र - क्षेत्रों के शोथ से घर्षण शब्द ( friction sound ) उत्पन्न होता है ।
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