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रक्तपरिवहन की विकृतियाँ
२७३ मृत्यु का एक अति सम्भाव्य कारण तो यह हो सकता है कि जब वात दक्षिण हृदय में आजाती है तो वहाँ मन्थन क्रिया से झागयुक्त रक्त हो जाता है। झागों के कारण हृच्छिद्रों में होकर निकलने में या आगे फुफ्फुस की सूक्ष्म वाहिनियों में होकर जाने में वह पूर्णतः असमर्थ हो जाता है । इससे दक्षिण हृदयावपात ( right-sided failure of the heart ) देखा जाता है।
२. स्नेहान्तःशल्यता ( Fat Embolism ) निम्न कारणों से स्नेह-विन्दु शरीर की क्षतिग्रस्त वाहिनियों में प्रवेश कर सकते हैं(अ) अस्थिभग्न ( fractures of bones ) (आ) उपत्वक् धातु के क्षत ( contusions of subcutaneous tissue) (इ) स्नैहिक यकृत् का स्फुटन ( rupture of fatty liver ) (ई) तीव्र अस्थिमज्जापाक ( acute osteomyelitis) (उ) अत्यधिक स्नैहिक विहास के कारण व्याप्त विषता ( poisoning due to
excessive fatty degeneration ) (ऊ) रक्तस्राव या शोथीय उत्स्यन्दन ( effusion ) के कारण पीडन बढ़ने से सिराओं में भी स्नेहविन्दु देखे जा सकते हैं।
इस प्रकार रक्त के अन्दर स्नेहविन्दु आने पर वे दक्षिण हृदय तक पहुँचते हैं और वहाँ से फौफ्फुसिक धमनिकाओं एवं केशिकाओं में जाते हैं तथा वहाँ से थूक के अन्दर भी देखे जाते हैं। यही नहीं अतिसूक्ष्म स्वरूप के ये स्नेहविन्दु फुफ्फुस की केशिकाओं में होकर वामहृदय में पहुँच कर सांस्थानिक परिभ्रमण करने चल देते हैं। और वहाँ से मस्तिष्क की सूक्ष्मातिसूक्ष्म वाहिनियों में जाकर बहुसंख्यक रक्तस्राव उत्पन्न कर देते हैं। जिसके कारण अङ्गघात और संन्यास होकर मृत्यु तक हो जाती है।
ऐसे ही स्नेहविन्दु मूत्र में, तथा केशिकाजूटों (गुच्छिकाओं) को काटने पर वृक्कों में मिलते हैं। फुफ्फुसों में इनकी उपस्थिति से मृत्यु होना कहाँ तक सम्भव है यह नहीं कहा जा सकता।
३. जीवाणुजन्य अन्तःशल्यता जीवाणुओं के झुण्ड या संघों के कारण भी अन्तःशल्यता देखी जाती है जिनमें निम्न मुख्य हैं :
१. पूयिक ज्वरों में नीलारुणसिध्म ( petechae) का निर्माण । २. विषमज्वर के कीटाणुओं ( malarial parasites ) द्वारा मस्तिष्क वाहि
नियों का अवरोध करके मस्तिष्कजन्य विषमज्वर की उत्पत्ति । ३. श्लीपदीय कृमियों ( filarae bancrofti ) द्वारा लसवहाओं का अवरोध ।
४. अर्बुदकोशाओं ( tumour cells) द्वारा अन्तःशल्यता होकर विस्थानान्तरित वृद्धि ( metastatic growth) का सृजन । यहाँ रक्त का अवरोध न होने से इनके अन्तःशाल्यिक परिणामों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता।
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