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विकृतिविज्ञान वहाँ बिछा देता है । इस मत से स्नैहिक उति ( fatty tissue ) के अन्दर चूर्णीयन की क्रिया की पुष्टि होती है।
२. वैल्स का मत-इस मत के द्वारा काचर विह्रास को प्राप्त कोशाओं के चूर्णीयन की पुष्टि की जाती है। कहा जाता है कि काचरीकृत कोशा चूर्णातु (कैल्शियम) को बहुत पसन्द करते हैं । रक्त में चूर्णातु द्विलवणों ( डबल साल्टों) के रूप में उपस्थित रहता है और वहाँ उसे प्रांगारिक अम्ल घोले रहती है। पर मृत ऊति में प्रांगारिक अम्ल बहुत कम रहने से चूने के लवण निस्सादित (precipitated ) हो जाते हैं। साथ ही रक्त से और अधिक मात्रा में विलेय चूर्णातु वहाँ पहुँचता रहता है जो उन कोशाओं में बराबर सञ्चित होता रहता है।
चूर्णीयन के स्थान चूर्णीयन निम्न स्थान में होता है:
१. कास्थियाँ-कण्ठ तथा उपपर्शकाओं की कास्थियाँ वृद्धावस्था में चूर्णीभूत हो जाती हैं।
२. पेश्यर्बुद-स्त्री के रजोनिवृत्तिकालीन पेश्यर्बुद ( myoma ) में । ३. काचरविहास युक्त ऊतियों में जैसा पहले बताया जा चुका है। ४. पुरानी व्रणवस्तु ( old scar ) में। पुरानी मृत ऊतियाँ जो शरीर में स्थान स्थान पर घिरी रह जाती हैं जैसे
५. धनास्त्रिं ( thrombi ), आतञ्च ( clot) प्राचीन रक्तस्राव, विद्रधियाँ आदि सभी चूर्णीभूत हो जाती हैं। उनसे सिरा-उपल ( phleboliths ) बनते हैं।
६. परजीवी जैसे मण्डल ऊतिकामी ( trichinella. spiralis)। ७. धमनियों के विहासजनित सिध्मों ( atheromatous patches ) में। ८. यक्ष्मा के किलाटीय पदार्थ ( caseous mass ) में।
९. मस्तिष्क के एक अर्बुद का सैकतार्बुद (psamoma ) नाम इसलिए पड़ गया है कि चूने के कण बहुत बड़ी मात्रा में उस पर चिपके रहते हैं। मस्तिष्क में जब प्रगण्डों ( ganglion ) में विहास होता है तो वहाँ चूर्णीयन देखा जाता है।
१०. कास्थ्यर्बुद ( chondroma ) तथा तन्तुपेश्यर्बुद ( fibromyomata) में भी विस्तृत चूर्णीयन देखा जा सकता है।
चूर्णीयन का ज्ञान अण्वीक्ष से देखने पर सर्वप्रथम ऊति के कोशीय पदार्थ ( cellular mess ) में चूने का भाग धूल के सूक्ष्म कणों के रूप में प्रकट होता है। उनकी पारादर्शता, कृष्णवर्णता, विषमता एवं साधारण खनिज अम्लों में प्रांगारिक अम्लों के बुलबुलों के साथ घुलनशीलता से चूर्णियन का ज्ञान हो सकता है।
यदि स्थूल दृष्टि से देखें तो उससे अधिक इसका ज्ञान स्पर्श से होता है क्योंकि प्रारम्भ में अंगुली से यह खुरदरा (gritty feel ) होता है। जो और कुछ समय बाद कठिन ( hard ) तथा पृथक् ग्रन्थिकाओं में मालूम होता है। ये ग्रन्थिकाएँ आगे
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