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विह्रास विसर्जन में भी गड़बड़ी मिलने से मूत्र विषमयता या मिहरक्तता (uraemia)
भी मिल सकती है। मूत्र में कणदार निर्मोक (granular casts ) या काचर निर्मोक मिलते हैं। पूर्ण प्रगल्भ अवस्थाओं में शोफ (dropsy ) मिलता है। परन्तु रक्तपीडन बढ़ा हुआ नहीं मिलता। ग्रीन का कथन है कि उपरोक्त लक्षणों के देखने से वृक्क का मण्डाभोत्कर्ष ( renal amyloidosis ) अनुतीव्र वृक्कपाक से पूर्ण सादृश्य रखता है।
धमनी विह्वास (Arterial Degeneration) धमनियों में ३ प्रकार के अपजनन पाये जा सकते हैं:
१. धमनीजारठ्य (athero-sclerosis)-इसमें अन्तस्तर ( intima ) के अन्दर स्नैहिक भरमार तथा स्नैहिक विहास आरम्भ हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप धमनी प्राचीर कहीं स्थूल हो जाती है तथा छोटी वाहिनियाँ भी अवरुद्ध हो जाती हैं। यह परिवर्तन धमनिकाओं के पूर्व की धमनियों में देखा जाता है।
२. अभिमध्य चूर्णीयन ( medial calcification)-इसमें धमनी के मध्यस्तर में पहले काचर विहास होकर फिर वहाँ चूर्णियन होता है। जिसके परिणामस्वरूप सारी वाहिनी चूर्णिय नाली ( calcerous tube ) बन जाती है।
३. धमनिकीय जारठय ( arteriolar sclerosis)--यह धमनिकाजन्य विहास है। इसके अन्तःस्तर में स्थान स्थान पर काचर विहास होता है जिनके कारण ग्रन्थिकाएँ बन जाती हैं। इन ग्रन्थिकाओं का भाग अन्दर की ओर कुछ निकल कर मुखावरोध कर लेता है। यह अवस्था संतत रुधिर निपीडाधिक्य ( continuous high blood pressure ) के परिणामस्वरूप होती है।
चूर्णीयन (Calcification) ___ यह एक निश्चेष्ट ( passive ) प्रक्रिया है जो मृत वा मृतप्राय कोशाओं में रासायनिक परिवर्तनों के कारण मिलती है इसके अन्दर ऊतियों में चूने के लवणों का निपावन (अन्तराभरण) होने लगता है। अस्थीयन (ossification ) और चूर्णियन में अन्तर यह है कि एक में अस्थिकृत कण ( osteoblasts ) सजीव ऊति में चूने का अन्तराभरण करते हैं तथा दूसरे में मृतप्राय अचोष्य (unabsorbable) उति में चूना भरा जाता है। इस प्रकार रासायनिक-भौतिक अवस्था उचित होने पर यह किसी मृत धातु में हो सकता है । चूर्णीयन के कारण अन्ततः उति अस्थि में बदल जाती है।
चूर्णीयन प्रक्रिया को व्यक्त करने के लिए आजकल दो मत प्रचलित हैं:
१. क्लोत्स का मत-इसके अनुसार सर्वप्रथम ऊतियों के अन्दर स्नैहिक विहास होता है फिर स्नेहों से क्षारीय स्वफेन (alkaline soaps ) का निर्माण होता है। अधिक विलेय क्षारों को चूने के लवण स्थानच्युत करके स्वयं उनका स्थान ले लेते हैं तथा प्रांगारिक अम्ल (कार्बोनिक एसिड), भास्विक अम्ल (फोरस्फोरिक एसिड)तथा स्नैहिक अम्लों को निकाल कर चूर्णातुप्रांगारीय (कैल्शियम कार्बोनेट)
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