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विह्रास
२५७ चल कर पत्थर सी कठिन हो कर फिर टूट जाती हैं और तल को विषम बना देती हैं और वर्ण में आपीत या आधूसर वर्ण की हो जाती हैं ।
चूीयित भाग मृत एवं निश्चेष्ट होता है कभी कभी तो वह अस्थीयित ( ossi fied ) हो जाता है और कहीं कहीं उसमें अस्थि की भांति एक मज्जा कूप भी बन जाता है।
विस्थायिक चूर्णीयन ( Metastatic calcification) कभी कभी स्वस्थ ऊतियों में भी चूर्णातु लवण संचित हो जाते हैं। अधश्चर्म ( subcutaneous) ऊतियाँ, वृक, धमनीप्राचीर तथा फुफ्फुस इससे अधिक प्रभावित देखे जाते हैं । इस प्रकार लवणों के संचित होने का प्रधान कारण चूर्णातु भास्वीय द्वारा रक्त रस का अत्यनुवेधन (oversaturation) हुआ करता है तथा यह चूना उन्हीं उन्हीं ऊतियों में पुनः स्थापित होता है जहाँ की प्रांगारद्विजारेय वात की आतति ( tension ) अधिक होने से उदजन-अयन-संकेन्द्रण ( hydrogen-ion concentration ) में अन्तर आ गया है। यह क्रिया बहुत कम देखी जाती है और कालिक वृक्कपाक में भास्विक अम्लोत्कर्ष ( phosphatic acidosis) के साथ प्रायशः सम्बद्ध रहता है यदि अधिक मात्रा में जीवति घ ( vitamin D ) दी जावे या जीवों को प्रचुर परिमाण में अम्ल भास्वेयों को खिलाया जावे। विचूर्णीकारक अनेक रोगों में जैसे सामान्यित तन्तुमय अस्थिपाक (generalised osteitis fibrosa) या कंकाल के नाशकारक बहु-अर्बुदों ( destructive multiple new growths of the skeleton ) में भी यह पाया जाता है। वृकपाकजनित रोगियों में उपगलग्रंथि का अतिचय होने से रक्तरस का चूना बढ़ जाता है क्योंकि इस अवस्था में भास्विक अयन बढ़ जाते हैं इसीलिए रक्तरस का चूर्णातु भास्वीय से अत्यधिक अनुवेधन हो जाता है। ___एक अवस्था जिसे चूर्णोत्कर्ष (calcinosis) कहते हैं। इस दशा से पूर्णतः भिन्न होती है। वह तो शिशुओं का एक चयापचपिक रोग है यद्यपि उसमें भी अधश्चर्म ऊतियों और पेशियों में भी चूर्ण क्षेपण होता है।
अश्मरियाँ ( Concretions) पित्ताशय, पित्तप्रणाली, वृकमुख, गवीनी, बस्ति तथा अन्य भागों में विभिन्न प्रकार की अश्मरियाँ मिलती हैं वे चयापचयिक परिवर्तनों के कारण या उपसर्गजनित होती हैं। भास्वीय, तिग्मीय या प्रांगारीय लवणों के रूप में चूर्णातु इनमें मिलता है। इन के अतिरिक्त इनमें प्रांगारिक पदार्थ जैसे मिहिक अम्ल, मिहीय (वृक्काश्मरियों में ) पित्तलवण, रंजक, पैत्तव (पित्ताश्मरियों में) पाये जाते हैं । क्ष-किरण परीक्षामें चूर्णातु के लवण पारादर्श होते हैं । इसी से उनके चित्र लिए जा सकते हैं। उनका वर्णन यथास्थान पुनः होगा।
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