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विकृतिविज्ञान
महास्रोतस् का मएडाभ विह्रास .. (Amyloid Degeneration of the Alimentary Canal)
मुख से लेकर गुदपर्यन्त कहीं भी यह विहास देखा जाता है। अन्नप्रणाली (oesophagus ), आमाशय और आन्त्रद्वय के श्लेष्माभ, उपश्लेष्माभ तथा पैशिक तीनों ही आवरण इसके द्वारा प्रभावित होते हैं। परन्तु ये अंग अकेले कभी प्रभावित होते नहीं। जिह्वातल के केशाल प्रभावित होने से श्लेष्मलकला को रक्त कम पहुँचता है इससे उसका पोषण नहीं हो पाता और इसके कारण मुख में और जिह्वा पर व्रण देखे जाते हैं। क्षुद्रान्त्र में जो प्रायशः इस विहास से प्रभावित होता है देखने यह ज्ञात नहीं होता कि इस पर कोई प्रभाव पड़ा है क्योंकि इसकी आकृति में कोई खास परिवर्तन दिखाई नहीं देता। श्लेष्मलकला, पाण्डुर, पारभासी, चिकनी और शोफयुक्त ( oedamatous ) हो जाती है। अधिक प्रवृद्ध रुग्णों में आँत मोटी पड़ सकती है और उसमें व्रण देखे जा सकते हैं। यदि श्लेष्मलकला को धोकर उस पर जम्बुकी विलयन से अभिरंजन करें तो आरक्त बभ्र वर्ण के असंख्य बिन्दु पास पास सटे हुए देखे जा सकते हैं। ये उन रसांकुरों ( villi ) में मिलते हैं जिनके केशालों और धमनियों में मण्डाम परिवर्तन हो चुके होते हैं। प्रोदलनीललोहित ( methyl violet ) द्वारा अभिरञ्जन करने पर केशिकाजाल कितनी बुरी तरह प्रभावित हुआ है इसे देखा जा सकता है।
___ मण्डाभ विह्रास के परिणाम
( The effects of amyloid degeneration ) जब तक वृक्क, यकृत् एवं आन्त्र में से कोई या सभी विकृत और नष्ट नहीं हो जाते तब तक ये परिणाम प्रगट नहीं होते। यकृत् का मण्डाभ विहास होने पर भी उसका प्रभाव केशिकामाजिसिरा के अवरोध द्वारा जलोदर उत्पन्न करने का नहीं होता। पर जब कभी वह अवरोध हो जाता है तब जलोदर की यथेष्ट सम्भावना रहती है यकृत् में साथ ही स्नैहिक विहास और अपोषक्षय भी रहते हैं जो उसकी क्रियाशक्ति को मन्द बना देते हैं।
आन्त्र में मंडाभ विहास के कारण उसको आपूरित करने वाली वाहिनियों की प्राचीर में विशेष आघात हो जाता है जिसके कारण न तो आन्त्र में जलीयांश का शोषण होता है न स्राव । अतः जलीय अतिसार हो जाता है। जो एक गम्भीर अवस्था है।
वृक्कों में भी इसके कारण वाहिनी-प्राचीर आघातपूर्ण हो जाती है जिससे मूत्र की राशि बढ़ती है तथा उसमें श्विति ( albumen ) पर्याप्त मिलने लगती है। इस कारण वितिमेह एवं बहुमूत्र दोनों ही हो जाते हैं । पर जब वृक्काणुओं ( nephrones ) को रक्त की मात्रा पूर्णतः नहीं मिलती तो फिर वे सिध्मीय तन्तूत्कर्ष (patchy fibrosis) तथा मूत्राल्पता के कारण बन जाते हैं । मिह के
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