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विहास
२४३ अण्वीक्ष द्वारा देखने पर ज्ञात होता है कि प्रभावित कोशा में स्नेह या तो एक बड़ी बूंद के रूप में मिलता है या असंख्य छोटी छोटी बूंदों के रूप में देखा जाता है। इन दोनों में से पहला स्वरूप स्नैहिक भरमार का प्रमुख लक्षण है तथा दूसरा स्वरूप स्नैहिक विहास में पाया जाता है। स्नेह की ये बूंदें स्नेहविलायकों ( fat-solvents) जैसे दक्षु (ईथर), काष्ठव (जायलोल) आदि में घुल जाती हैं पर शुक्तिकाम्ल (acetic acid ) में नहीं घुलती । गुर्विकाम्ल इन्हें काला कर देती है । ___ अब नीचे विभिन्न अङ्गों में पाये जाने वाले स्नैहिक परिवर्तनों का यथाक्रम वर्णन करते हैं:
हृदय का स्नैहिक विह्रास ( Fatty Degeneration of the Heart ) निम्न कारणों से हृदय का स्नैहिक अपजनन होता है :१. गम्भीर स्वरूप की रक्तहीनता ( severe anaemia) २. अनुतीव्र विषरक्तताएँ ( subacute toxaemias) ३. अभिलागी परिहृद्च्छदपाक ( adhesive pericarditis ) ४. हृत्पेशीपाक ( Myocarditis) ५. धमनीपाक ( atheroma)
हृत्पेशी के स्नैहिक विह्रास ग्रस्त होने पर हृत्कार्य मन्द पड़ जाता है। हृदय श्लथ (flabby) भिदुर या क्षोद्य (friable) हो जाता है। अण्वीक्ष से देखने पर हृत्पेशी के रेखाङ्कन (striation) लुप्त हो जाते हैं। चिरकालीन रुग्णों के हृदय का रंग कबुरित ( mottled ) हो जाता है । हृत्पेशी अपारदर्शक ( opaque ) और पाण्डुर (pale) हो जाती है। उसमें इतस्ततः पीले धब्बे मिलते हैं। तुलना में वह चीते की खाल जैसी होती है। __हृदय में स्नैहिक विहास का विस्तार पहले मांसस्तम्भी (columnae carnae). से होता है । वहाँ से वामनिलय में जाता है फिर दक्षिणनिलय में पहुँचता है।
____यकृत् का स्नैहिक विह्रास
( Fatty Degeneration of the Liver ) स्नैहिक विहासजनित यकृत् देखने में श्वेत-आपीत हो जाता है। प्राकृतिक यकृत् से दुगुना उसका आकार हो जाता है। धरातल चिकना, किनारे मोटे एवं गोल हो जाते हैं। उसका आपेक्षिक घनत्व कम हो जाने से उसके टुकड़े जल पर तैरते हैं।' काटने पर उसका धरातल कर्बुरित ( mottled ) हो जाता है। जहाँ स्नेह होता है वह प्रदेश श्वेत-आपीत एवं अपारदर्श हो जाता है। यदि स्नेह का अधिक सञ्चय रहा तो काटने पर केवल आपीत क्षेत्र ही दिखाई देते हैं। स्वस्थ यकृत् रक्तपूर्ण और लाल दिखाई देता है। संरचनादृष्टया वह पिष्टीय ( doughy ) और सगर्त रहता है। काटने पर चाकू को चिकना कर देता है।
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