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विकृतिविज्ञान जारण (oxidation) की अपर्याप्ति ही दोनों विकृतियों का मूल एवं प्रधान हेतु है। स्नैहिक भरमार में मेदोधिक्यता का कारण अधिक स्नेह सेवन करके कम व्यायाम करना है जिसके कारण जितना आहार लिया जाता है उसके अनुरूप उसका भस्मीकरण नहीं हो पाता। भरमार पैतृक ( hereditory ) भी पाई जा सकती है। वृद्धावस्था में भी यह दृष्टिगोचर होती है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों (endocrine glands ) में विकार होने से भी मेदस्विता बढ़ती हुई देखी जाती है। इस प्रकार देखने से ज्ञात होता है कि साधारणतया कोशाओं में स्नेह की भरमार बहुत कुछ भौतिक कारणों से हुआ करती है। विष का परिणाम उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है।
परन्तु स्नैहिक विहास में जहाँ जारण की कमी एक कारण है वहाँ उसके मूल में कोशा की किसी जैविक वा रासायनिक विष के कारण होने वाली विषग्रस्तता महत्त्वपूर्ण कारण होता है। एक दूसरा कारण सकोश अपचयक ( cellular cata. bolite ) भी बतलाया जाता है। क्योंकि जारण प्रक्रिया में जैसे जैसे जारक वात ( आक्सीजन ) की कमी कोशाओं में होती जाती है त्यों त्यों ही यह अधिक विषयुक्त देखा गया है। चिरकालीन निश्चेष्ट अधिरक्तता (chronic passive congestion ) एवं गम्भीर रक्तहीनता ( serious anaemic conditions ) में भी अपचयक ( catabolites ) प्रमुख भाग लेते हैं।
स्नैहिक विहास करने वाले रासायनिक विषों में निम्न मुख्य हैं:सेन्द्रिय विष-१. मद्य।
२. नीरवम्रल (क्लोरोफार्म) निरीन्द्रिय विष-१. भास्वर (फास्फोरस)
२. सखिया के योग । स्नैहिक विहास करने वाले जैविक विर्षों का विचार करने पर ज्ञात होता है कि विहास की क्रिया सब प्रकार के उपसर्ग की अवस्थाओं में ( in all types of infectious conditions ) देखी जाती है मुख्यतः फुफ्फुसपाक और रोहिणी (diphtheria ) के उपसर्गों में।
चयापचय के विषैले पदार्थों का सञ्चय भी स्नैहिक विहास का कारण हुआ करता है। यकृत् की निश्चेष्ट अधिरक्तता की दशा में ऐसा ही होता है। स्त्रियों की गार्मिक वा साधारण विषमयताओं (eclampsia) में भी स्नैहिक विहास मिलता है।
स्नैहिक विह्रास और औतिकी ऊतिसंरचना की दृष्टि से देखने से पता चलता है कि जिस अङ्ग में स्नैहिक विहास होता है वह सूज जाता है, उसमें मेघाभगण्ड उपस्थित है। उसका रङ्ग श्वेत या श्वेतपीताभ देखा जाता है जिसके बीच में पीले धब्बे अथवा पीत रेखाएँ देखी जाती हैं। जिस अङ्ग में स्नैहिक विह्रास मिलता है उसकी प्रत्यास्थता भी नष्ट हो जाती है। वह अङ्ग मृदु एवं भिदुर या क्षोद्य ( friable ) हो जाता है। चाकू से काटने पर उसके फलक पर स्नेहविन्दु लग जाते हैं।
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