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विकृतिविज्ञान से एक मिश्रमस्तध्वेय बनता है। भास्वरयुक्त स्नेहों का यह वर्ग गुर्विक अम्ल से अच्छा अभिरंजित होता है इतना सूडान तृतीय (निषेचननारंग) से नहीं। अभिस्पन्दित प्रकाश में इसके स्फट द्विभुजाइल तरल भरे हुए कणों के समान प्रकट होते हैं।
ये विमेदाभ एक ओर तो क्लीब स्नेहों से मिलते हैं और दूसरी ओर प्रोभूजिनों से और ये अण्डपीति-श्वितियाँ ( lecithin-albumens ) बनाते हैं और इस प्रकार स्नेहों और प्रोभूजिनों का एक श्लेषाभीय विलयन ( colloidal solution ) बनाते हैं जो कोशा के प्ररस का महत्त्वपूर्ण भाग होता है। __क्लीब स्नेह ( neutral fats) त्वचा के नीचे, उदरच्छद के नीचे, अथवा अन्य कोशीय संयोजी ऊतियों ( cellular connective tissues ) में, समस्त शरीर में क्लीव स्नेह के पीत पिण्ड होते हैं। रासायनिक भाषा में ये मधुरल प्रलवण (glyceryl esters ) हैं तथा वे रासायनिक दृष्टि से पूर्णतः क्लीब भी हैं। क्लीब स्नेह जल में घुलता नहीं है परन्तु दत्तु (ईथर) नीरवम्रल (क्लोरोफार्म), शौक्ता (एसीटोन) अथवा काष्ठव (जायलोल) में वह पूर्णतः घुल जाता है। गुर्विकाम्ल (आस्मिकाम्ल) द्वारा इसका अभिरञ्जन भी हो जाता है। इस पर विमेदेद (लाइपेज) की क्रिया होकर यह मधुरी (ग्लिस्रीन) तथा स्नैहिकाम्लों (फैटी एसिड्स) में विभक्त हो जाता है। यकृत् में स्नैहिकाम्ल अननुविद्ध ( desaturated ) होते हैं जिसके कारण उनसे क्रियाक्षम विमेदाभों (active lipoids) की उत्पत्ति होती है।
स्नैहिक परिवर्तनों की सम्प्राप्ति किसी भी धातु के कोशाओं में स्नेहसम्बन्धी २ प्रकार की गड़बड़ी या विकृति देखी जा सकती है :
१. स्नैहिक निपावन ( fatty infiltration ) तथा २. स्नैहिक विहास ( fatty degeneration ) हम इन दोनों का संक्षिप्त परिचय नीचे देते हैं :
१. स्नैहिक निपावन (fatty infiltration) इस शब्द का अभिप्राय है-कोशा में स्नेहांश की अत्यधिक सञ्चिति । जब रक्त स्नैहिक द्रव्यों को बहुत अधिक परिमाण में लेकर चलता है तो यह विकृति हुआ करती है। कभी कभी यकृत् में स्नैहिक निपावन विशेष रूप से देखा जाता है। अर्थात् यकृत् के कोशा स्नेह की बड़ी बड़ी बूंदों से भर जाते हैं। उनका कोशा-रस छिप जाता है तथा उनकी न्यष्टीला ( nucleus ) एक ओर सरक जाती है।
२. स्नैहिक विहास ( fatty degeneration )-जब शरीरस्थ धातु की कोशाओं को कोई जीवाणुविष ( bacterial poison ) विषाक्त कर देता है तो उनकी जारण की शक्ति (power of oxidation ) का हास हो जाता
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