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विहास
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है । साथ ही उनके कोशा-रस में जो एक स्नेह प्रोभूजिनीय श्लेषाभ पदार्थ ( colloidal fatty protein ) अदृश्य रूप में रहता है वह एक दम प्रकट हो जाता है । यह प्रकटीभूत स्नेह और कुछ न होकर स्वयं क्लीब स्नेह मात्र होता है । स्नेह के इस प्रकटीकरण को स्नेह-दर्शन (fat phanerosis) कहते हैं। इस प्रकार देखने से ज्ञात हुआ है कि स्नैहिक विहास एक विषग्रस्त कोशा के स्नैहिक निपावन के कारण लाये स्नेह तथा स्वतः कोशा के कोशा-रस से प्राप्त स्नैहिक विहासका योग मात्र है।
स्नैहिक विहास प्रायः मेघाभशोथ के बाद की अवस्था है । इसके हो जाने पर कोशा के स्वस्थ होने के अवसर बहुत सन्देहप्रद देखे और पाये जाते हैं ।
प्रायः स्नैहिक विहास एवं स्नैहिक भरमार ये दोनों विकृतियाँ एक साथ होती हैं इस कारण स्नेह की अधिकता कोशाओं में प्रकृतावस्था से बहुत अधिक पाई जाती है। शरीर के विभिन्न अङ्ग-प्रत्यङ्गों के कोशाओं में से प्रत्येक में स्नेह की मात्रा समान नहीं होती । यकृत्, हृदय एवं सर्वकिण्वी में जहाँ वास्तव में स्नेहाधिक्य होता है वहाँ प्लीहा, वृक्कों वा अन्य अङ्गों में वैसी स्नेहाधिकता नहीं मिलती ।
स्नैहिक निपावन – स्नेह का अतियोग
( अतिस्नेह सेवन )
आहार में स्नेह साधारण, अधिक परन्तु व्यायामा -
स्नेह
भाव
1 रासायनिक
T
रक्तहीनता विष महास्रोतीय
विकार
अञ्जन
क्लोरोफार्म फास्फोरस
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I
जैविक
भरमार और अपजनन में हेतु
स्नैहिक विह्रास हेतु निदर्शनी तालिका
आन्त्रिकज्वर
रोहिणी
मसूरिका दोषमयता
२१, २२ वि०
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स्नैहिक विहास - स्नेह का मिथ्यायोग
मद्य आदि का सेवन जो अधिक स्नेह का पाचन करके उसकी मात्रा शरीर में बढ़ा देते हैं ।
स्नेह का स्नेहशरीर में सञ्चिति अत्यधिक
विघटन
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1
कुलज प्रवृत्ति
( दुःस्नेह सेवन )
T
जारण की कमी
|
भक्षकाया णुओं द्वारा
स्नेह का सेवन
रक्तसंव- जारण का
हन सं
स्थान से
स्नेह की
अपूर्ण
च्युति
हास सिराजन्य
अधिरक्त
ता ऋणास