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विहास ७. तीव्रज्वर्यावस्थाओं में ( in acute febrile conditions ) ८. रोगों की चिरकालीनता ( chronicity of the diseases)
रक्त के पैत्तव का प्रमाण प्राथमिक (primary ) एवं द्वितीयक (secondary) अरक्तता ( anaemias ) में घट जाता है। __ यहाँ उपरांकित विमेदाभों का कुछ परिचय देना आवश्यक प्रतीत होता है । सर्वप्रथम हम पैत्तव या कोलेस्टरोल को लेते हैं। यह न तो एक स्नेह ही है और न एक विमेदाभ ही अपि तु यह एक सुषव (अल्कोहल ) है जिसका सम्बन्ध विक्षामेण्यों ( anthracenes ) से है जिसमें एक प्रतिस्थाप्य उदजारल वर्ग (a replaceable hydroxyl group ) रहता है। इसी वर्ग की कृपा से यह स्नैहिक अम्लों के एक व्यूहाणु से मिलकर पैत्तव प्रलवण बनाता है और इसी प्रलवण के रूप में यह उतियों के अन्दर क्रियावान् रहता है। ये प्रलवण कहीं भी शीघ्रतया नष्ट होकर पैत्तव के स्फटों को जन्म देते हैं। ये स्फट पुराने शोथ स्थानों पर, कोष्ठों ( cysts ) में, मुष्क वृद्धि ( hydrocele ) में तथा धमनी जारठ्य के सिध्मों ( patches of arterial atherosclerosis ) में प्रायशः पाये जाते हैं। ये पैत्तव अभिस्पन्दित प्रकाश में द्विगुणित भुजाइल ( doubly refractile in polarised light ) होते हैं। तथा स्नैहिक अभिरंजकों से बहुत धुंधले अभिरंजित होते हैं। शरीर में पैत्तवों के महत्त्व पर आधुनिक खोजों ने बहुत प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए शरीरस्थ धान्यरुक-सान्द्रव ( ergosterol) जीवति ध का महत्त्वपूर्ण संघटक है जिसमें होकर गया हुआ पारजम्बु प्रकाश (ultra-violet light ) चूर्णातु चयापचय ( calcium metabolism ) को प्रभावित करता है । स्त्री और पुरुषों के लैंगिक न्यासर्ग ( sex-hormones ) पैत्तव से बहुत अधिक मिलते हैं। तथा विराल तैलों ( tar oils) का कर्कटजनककारक ( carcinogenic factor ) का रासायनिक स्वरूप भी इसी के सदृश होता है।
अण्डपीति तथा मस्तध्वेय दोनों जटिल स्वरूप के स्नेह हैं। इनमें प्रथम बहुत महत्त्व की है। यह (अण्डपीति) कोशा-चयापचय में महत्त्वपूर्ण भाग लेती है । यह सभी कोशाओं में पायी जाती है, यह स्नेहों तथा जलीय घोल के बीच में रासायनिक मध्यस्थ का कार्य करती है। यह जल और जल में घुले पदार्थों को शीघ्र प्रचूषित कर लेती है तथा स्वयं स्नेहों तथा तैलों में घुल जाती है। अण्डपीति मधुरव (glycerol ) से बनती है जिसके दो प्राप्य उदजारलवर्ग स्नैहिक अम्लों से मिलते हैं तृतीय उदजारलवर्ग क्लीब स्नेहों की तरह स्नैहिकाम्ल व्यूहाणुओं से न मिलकर भाविक अम्ल से मिल जाता है और इसके साथ भूयात्यपीठ ( nitrogenous base ) की पित्ती ( choline ) मिली रहती है । अण्डपीति और मस्तिष्क ( cep. halin ) दोनों में मधुरव, स्नैहिक अम्ल, भास्विक अम्ल और भूयात्यपीठ पाई जाती हैं। मस्तध्वेयों की रचना भी इसी प्रकार की होती है पर उनमें शर्करा का एक व्यूहाणु विशेष कर (क्षीरधु का) और मिला रहता है। दो मस्तध्वेयों के मिलने
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