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विकृतिविज्ञान मेघाभगएड की अत्यन्तावस्था वा जलमय विहास (hydropic degeneration ) इस अवस्था में कोषाएँ इतनी अधिक फूल जाती हैं कि उनके कायाणुरस में रसधानी ( vacuoles) बन जाती हैं जो आगे चलकर द्रवसञ्चयस्थलिकाएँ ( blebs ) कहलाती हैं। कभी कभी त्वचा में फफोलों की शक्ल में तथा नलिकाओं के स्तर में भी यही परिवर्तन पाये जाते हैं। इस सब का कारण उतियों का शोथ है। मधुमेह ( diabetes ) में मधुवशी ग्रन्थियों ( islets of Langerhans ) में भी यह परिवर्तन मिलता है।
स्नैहिक विह्रास ( Fatty Degeneration ) संयोजी ऊतियों को छोड़कर जिनका एक कार्य स्नेह-सञ्चय भी है अन्य किसी भी कोशा में स्नेह की प्रकट रूप में उपस्थिति विकृति की निर्देशिका है। जब किसी उति के किसी कोशा में स्नेह की उपस्थिति प्रकट हो जाती है तो उसके दो ही अर्थ निकाले जा सकते हैं। एक तो यह कि कोशा स्नेह का उपयोग करने में असमर्थ है या दूसरा यह कि कोशा स्वयं विषाक्त हो गया है जिससे उसके प्ररस का अभेद्य अङ्गरूप स्नेह स्वतन्त्र होकर प्रकट हो गया है । __ स्नेह शरीर में ऊतियों के प्रत्येक कोशा का एक निश्चित संघटक है तथा यह शक्ति के सञ्चय की उत्कृष्टतम विधि है। इन दोनों बातों की दृष्टि से शरीर में २ प्रकार के स्नेह पाये जाते हैं। जिनमें एक रासायनिक दृष्टि से क्रियाशील होता है इसे विमेदाभ ( lipoid ) कहते हैं। यह प्रत्येक धातु-कोषा में रहता है। दूसरा क्लीबस्नेह ( neutral fat ) कहलाता है जो विभिन्न ऊतियों में सञ्चित रहता है।
विमेदाभस्नेह ( Lipoids )-इसमें पैत्तव (cholesterol ), प्रलवण ( cholesterol esters ), soegifat ( lecithin ), Hrasta (cerebrosides ) एवं मिश्रमस्तध्वेय ( compound cerebrosides ) आते हैं। इन विमेदाभों ( lipoids ) के कारण ही कोशा के प्ररस (protoplasm ) में स्नेह की इतनी मात्रा मिलती है। यकृत् , हृदय और सर्वकिण्वी ग्रन्थि में विमेदाभों का क्रमशः प्रतिशत प्रमाण २०, १५ तथा १६ मिलता है । रक्त में पैत्तव ०.१ से ०.२ ग्राम प्रति १०० घ. शि. मा. ( सी. सी.) के हिसाब से मिलता है। रक्त के पैत्तव का प्रमाण निम्न दशा में बढ़ जाता है :
१. सगर्भावस्था ( pregnancy ) २. जीर्ण अवरोधक कामला (chronic obstructive jaundice ) ३. अनुतीव्र वृक्तकोष ( subacute nephritis) ४. मधुमेह (diabetes mellitus) ५. वृक्काणूत्कर्ष ( nephrosis) ६. धमनी जारव्य (arterio-sclerosis ) एवं उच्च रक्त निपीड (high
blood pressure ) युक्त वृक्करोग ( kidney disease )।
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