________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
विहास
वृक्कों का स्नैहिक विह्रास
(Fatty Degeneration of the
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Kidneys)
जिन कारणों को लेकर शरीर के अन्य किसी भी अङ्ग में स्नैहिक विहास हुआ हुआ करता है उन्हीं से वृक्कों में भी मिल सकता है। वृकपाक ( nephritis ) एवं वृक्कोत्कर्ष ( nephrosis ) में भी यह पाया जाता है ।
जब वृक्क में स्नैहिक विहास हो जाता है तो उसका बाह्यक भाग ( cortex ) तथा नालिकाओं ( tubules ) के अन्तश्छदीय कोशाओं में मेघाभगण्ड मिलता है । उनके कोशारस में स्नेहविन्दु भी मिलते हैं । इस विहास में परिवलित नालिकाओं (convoluted tubules ) की कोशाएँ सबसे अधिक प्रभावित होती हैं ।
अनुतीक्ष्ण जीवितक वृक्कपाक ( subacute parenchymatous nephritis) में अथवा वृक्कोत्कर्ष ( nephrosis ) में नालिकीय अधिच्छद का विहास हो जाता है। स्नैहिक विह्रासजनित वृक्क को काटने पर धरातल पर पीत रेखाएँ मिलती हैं ये पैत्तव प्रलवर्णो ( cholesterine esters ) के कारण होती हैं । यही स्नेहविन्दु मूत्र में भी देखे जा सकते हैं । यह भी कहना कठिन है
कि यह स्नैहिक विह्रास होता है या वृक्क में विमेदाभ द्रवों का निपावन ( भरमार ) हो रहा है 1
२४५
अन्य स्नैहिकपरिवर्तन
अब नीचे स्नैहिक विहास के अतिरिक्त अन्य उन परिवर्तनों का वर्णन किया जावेगा जिनमें स्नेह की मात्रा उनके संघट्ट आदि में परिवर्तन होकर विभिन्न स्वरूप हो जाते हैं । वे इस प्रकार हैं:
--
अ - विमेदरक्कता ( Lipaemia )
रक्त में स्वाभाविकतया ०.६ से ०.७ प्रतिशत तक स्नेह की मात्रा पाई जाती है । जब वह बढ़ कर २६ प्रतिशत तक पहुँच जाती है तो उस अवस्था को विमेदरक्तता कहा जाता है । इस अवस्था में स्नेह की मात्रा रक्त में इतनी अधिक हो जाती है कि रक्त के ऊपर एक नवनीत - स्तर ( cream layer ) सा बन जाता है । इसमें सभी प्रकार के स्नेहों की वृद्धि देखी जाती है । यह निम्न रोगों में हो सकती है
१. अनुतीघ्र वृक्कपाक ( snbacute nephritis )
२.
वृक्ोत्कर्ष ( nephrosis )
३. मधुमेह (diabetes mellitus )
४. कालिक मदात्यय ( chronic alcoholism ) कभी कभी ।
आ - विमेदाभ प्रोतिकोशीयता (Lipoid Histiocytosis )
For Private and Personal Use Only
प्लीहा, यकृत्, लसग्रन्थियाँ तथा अस्थि-मज्जा के जालिकान्तश्छदीय संहति के कोशा ( the cells of reticulo-endothelial system ) स्वाभाविक: क्रियाशीलता के कारण प्रायः स्नेह की बढ़ी हुई सान्त्रा का स्वयं भक्षण कर लेते हैं जो