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विहास
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हो जाता है । पेशी - चोल ( sarcolemma ) में रचनाविहीन पदार्थ भर जाता है जो सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर काफी भिदुर और सिकुड़ा हुआ दिखता है । स्थूल दृष्टि से देखने पर तन्तु अर्द्धपारादर्श ( semi opaque ) श्वेत, स्वल्प चमकदार, आरक्त- धूसर या आब-पीत वर्ण के दिखाई देते हैं । ये बहुत भिदुर ( friable ) होते हैं । किन्तु एक पेशी के सभी तन्तु या पेशी के एक स्थान के भी सारे तन्तु कभी प्रभावित नहीं होते । जब कभी पेशीतन्तु फट जाते ( ruptured ) हैं तो वहाँ एक शोणितार्बुद ( haematoma ) का निर्माण हो जाता है जो आगे चलकर संसृष्ट ( infected ) होकर विद्रधि का रूप धारण कर लेता है । पर यदि उपसर्ग न पहुँचा तो पेशी धीरे धीरे ठीक हो जाती है ।
मण्डाभ कार्यो ( amyloid bodies) को पहले विकृतिवेत्ता मण्डाभ द्रव्य से पूर्ण माना करते थे । पर आज उन्हें काचर तथा स्नेह मृतकोशासमूहयुक्त माना जाता है। वे गोल वा अण्डाकार होती हैं । वे कई स्तरों से मिल कर बनती हैं । इन्हें आयोsir (जम्बुकी ) से नीला रंगा जा सकता है । वृद्धों में वातनाडीसंस्थान ( nervous system ) में इनके छोटे छोटे पिण्ड देखे जाते हैं । तीव्र उपसर्ग के कारण नवयुवकों में बड़े पिण्ड भी मिलते हैं । दृष्टिनाड़ी ( optic nerve ), दृष्टिपटल (retina) तथा झल्लरीप्रतान (choroid plexus ) तथा सुषुम्ना ( spinal cord ) में भी ये देखे जाते हैं । मस्तिष्क के श्वेत भाग में मस्तिष्क गुहाओं में भी मिलती हैं। आगे चल कर ये पिण्ड चूर्णीभूत ( calcified ) होकर 'मस्तिष्क - सिकता' ( brainsand ) बन जाते हैं ।
इन पिण्डों के बड़े स्वरूप हमें पुरःस्थ ( prostate ) ग्रन्थि में देखने को मिलते हैं । ये श्लेष्मल या लस्य ( serus ) कलाओं एवं फुफ्फुसों में भी पाये जाते हैं ।
मण्डाभव हास (Amyloid, waxy, albuminoid or lardaceous Degeneration )
raft इसका नाम विहास है पर वास्तव में यह एक भरमार ( infiltration ) काही प्रकार है । इसका कारण यह है कि जिन ऊतियों में यह होता है उनके कोशा मण्डाभ में परिवर्तित नहीं होते अपि तु रक्त के द्वारा उन कोशाओं में इस पदार्थ की बहुत बड़ी मात्रा पहुँचा दी जाती है ।
यह मण्डाभ पदार्थ सर्वप्रथम छोटी धमनिकाओं के अन्तच्छद के नीचे स्थित कोशाओं में सञ्चित होता है वहाँ से यह धमनी के मध्यस्तर को भरता है । परिणामस्वरूप मध्यस्तर के कोषाओं पर पीड़न पड़ता है और उनमें से अनेक नष्ट हो जाते हैं। वहाँ से मार्ग पाकर वह पदार्थ समीपस्थ कोशाओं में सचित हो कर योजी ऊत तथा जीवितक ऊति कोशाओं को नष्ट करने लगता है । यद्यपि यह देखा जाता है कि मण्ड पदार्थ के पीडन से कोशा स्वयं विनष्ट हो जाते हैं पर ऐसा एक भी प्रमाण नहीं मिलता कि ये मण्डाभ पदार्थ में कभी भी परिणत हुए हैं।
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