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ऊतिमृत्यु या ऊतिनाश
२३१ अधरचालकचेतैक प्रकारीय अङ्गघात (lower motor neurone type of paralysis ) के कारण परिशुष्क अङ्ग पोषण में प्राप्त बाधा का ही द्योतक है। पोषण की बाधा होने के लिए ३ ही कारण हो सकते हैं। एक तो उस ऊति को पहुँचने वाली धमनी का सम्बन्ध विच्छेद हो जावे । दूसरे उस ऊति का तर्पण करने वाले केशाल ( capillaries ) अवरुद्ध होकर रक्त का आवागमन रोक दें अथवा तीसरे बहुत बड़ा सिरावरोध हो जावे और रक्त परिभ्रमण में बाधा होकर पोषण का अभाव हो जावे।
इस प्रकार देखने से ज्ञात हुआ कि किसी भी ऊति की मृत्यु करने में निम्न कारण प्रधान रह सकते हैं:
अ-प्रभावित ऊति को रक्त पहुँचना बन्द हो जाना—यह निम्न कारणों से हो सकता है:
१. वहाँ तक आने वाली धमनी का कटना या टूटना, २. रक्त का अन्तःस्कन्दन ( या आतञ्चन ),
३. किसी रोग वा आघात के चिरकालीन परिणामस्वरूप धमनी के मुख के परिणाह का सङ्कीर्ण हो जाना,
४. धमनी का बाँधना ( ligature ), ५. धमनी का संपीडन ( compression ), तथा
६. धमनी में निरन्तर साङ्कोचिक आक्षेप ( spasm ) आना-जैसा कि रेनो के रोग ( Raynaud's disease ) में देखा जाता है।
आ-प्रभावित उति के केशालों का अवरुद्ध हो जाना—यह निम्न कारणों से हो सकता है:
१. जब केशालों की प्राचीर से छन छन कर रक्तरस प्रभावित ऊति के चारों ओर भर कर केशालों को दबाकर उनकी क्रिया को अवरुद्ध कर दे।
२. जब प्रभावित ऊति में या उसके समीप की उति में उत्पन्न होने वाले या हुए अर्बुद ( tumour) का पीड़न उस स्थान के केशालों पर पड़ कर उनकी क्रिया रोक दे।
३. अथवा जब एक ही आसन पर अधिक देर . स्थिर रह जावे तो शरीरभार के कारण दब कर किसी अंग या ऊति विशेष के केशालों की क्रिया रुक जावे। ___. कभी कभी एक अंग में अतिघटन या अतिचय ( hyperplasia ) होकर भी क्रिया रुक जाती है । वृक्कों में उपसर्ग के कारण जब उनके वृक्काणुओं के अन्तश्छद में अतिचय होता है तो रक्त का स्वयं अवरोध होकर रक्तस्कन्दन (आतञ्चन)हो जाता है जिसके कारण केशालों की क्रिया रुक जाती है।
इ-शरीरगत सिरावरोध-साधारण सिरावरोधों के कारण धातुनाश नहीं हुआ करता क्योंकि यदि किसी अंग में एक ओर सिराएँ अवरुद्ध भी हो गई तो
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