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विकृतिविज्ञान
द्विगुणाक्षिता ( diplopia ) का कारण मस्तिष्काघार ( base of the brain ) पर तृतीय चतुर्थ और षष्ठ नाडियों का प्रभावित होना है ।
अन्तःकरोटीयनिपीडाधिक्य का कारण मस्तिष्कोद के स्वाभाविक प्रचूषण के कार्य में शीर्ष भाग ( vertex ) में बाधा आ जाना है । मस्तिष्काघार पर स्थित जलाशयों में ज्यों ज्यों तरलाधिक्य होता जाता है त्यों त्यों ही मस्तिष्क ऊपर की ओर आधकित होता है और उतनी ही बाधा बढ़ती जाती है । इसके कारण मस्तिष्कनिलय विस्फारित होने लगते हैं | इस बाधा के कारण एक वास्तविक अन्तर्निहित उदमस्तिष्क (a true internal hydrocephalous ) प्रायः नहीं मिलता परन्तु शिशुओं में यह बहुधा देखा जाता है और वहां यह एक मारक उपद्रव के स्वरूप का होता है । कुछ में चतुर्थनिलय के छिद्र में एक तन्त्विमत् बाधा ( fibrinous obstruction ) के रूप में यह देखा जाता है परन्तु शैशव में इस बाधा से भी बढ़कर मृदुल मस्तिष्क का संपीडित होना है ।
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अब हम अन्य सपूय मस्तिष्कछदपाकों में २ पूयजनक जीवाणुओं से उत्पन्न पार्कों का वर्णन करते हैं
फुफ्फुसगोलाविक मस्तिष्कछदपाक
आता,
अकस्मात् प्रारम्भ
फुफ्फुसगोलाण्विक मस्तिष्कछदपाक ( Pneumocccal meningitis ) प्रधान ( primary ) और उत्तरजात ( secondary ) दोनों प्रकार का देखा जा सकता है । प्रधान या प्राथमिक उपसर्ग होने पर उपसर्ग का केन्द्र अन्यत्र कहीं नहीं देखने में केवल मस्तिष्क शिखर ( vertex ) की मस्तिष्कछद में विस्तृत आपीत हरितवर्ण का पूयीय स्राव स्थित हुआ देखा जाता है । यह रोग फुफ्फुस गोलाण्विक उदरच्छदपाक ( pneumococcal peritonitis ) के समान होता है तथा उतना ही अधिक घातक और भयङ्कर भी होता है । गौण या उत्तरजात उपसर्ग का प्राथमिक केन्द्र पूयीय मध्यकर्णपाक में या नासा के किसी अतिरिक्त कोटर में अथवा फुफ्फुस में हो सकता है । यहाँ रोग का प्रारम्भ उतना तीव्र और आकस्मिक नहीं होता परन्तु अवसान उतना ही घातक होता है जितना कि मुख्य प्रकार में । परन्तु आजकल रासायचिकित्सा की अभ्युन्नति तथा आश्चर्य ओषधियों के आविष्कार के कारण यह उतना मारक रह ही नहीं गया ।
इस रोग में मस्तिष्क सुषुम्नाजल ( मस्तिष्कोद ) प्रायः अत्यन्त पूयीय देखा जाता है । पर कभी कभी वह इतना स्वच्छ भी हो सकता है कि मस्तिष्कछदपाक की सम्भावना भी अत्यधिक सन्देहास्पद हो जाती है । पर स्वच्छ तरल का यह अभिप्राय नहीं कि रोगाणु है ही नहीं । यदि तरल अमथित्रित ( uncentrifuged fluid) से एक चित्रपट्टी तैयार की जावे तो उसमें असंख्य फुफ्फुसगोलाणु दिखलाई पड़ सकते हैं । कभी कभी मस्तिष्कोद में तन्तुजन की मात्रा कुछ बढ़ी हुई भी देखी जासकती है। कभी कभी तरल को परखनली में १० मिनट तक रखने पर वह जम कर श्लेष्यक ( jelly ) के समान बन जा सकता है ।
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