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विकृतिविज्ञान अंगघातावस्था ( paralytic stage ) ३ प्रकार की देखी जा सकती है - १-सौषुनिक २-सुषुम्नाशीर्षकीय. ३-प्रमस्तिकीय
सौषुनिक अंगघातावस्था तीनों में सबसे अधिक देखी जाती है। यहाँ पर जितने विक्षत कटिप्रवृद्ध भाग ( lumbar enlargement ) में देखे जाते हैं उतने ग्रैविक प्रवृद्ध भाग ( cervical enlargement of the spinal cord ) में नहीं देखे जाते। इसी कारण इस रोग में सक्थियों ( टाँगों lower extremities ) में जितना प्रभाव देखा जाता है उतना सक्नियों (बाहुओं upper extremities ) में नहीं देखा जाता । परन्तु कभी कभी एक टांग और एक बाहु भी प्रभावित मिलती है इसका कारण यह है कि एक ही अग्र शृंग अधिक प्रभावित होता है दूसरा बहुत कम या बिल्कुल बच जाता है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि इस रोग का विषाणु नीचे ऊपर या ऊपर नीचे चलता है दाँये बाँये नहीं। कभी कभी इस रोग के प्रभाव से एक देशी या एक वर्ग की पेशियाँ प्रभावित होती हैं और बहुत सी समीपस्थ छूट जाती हैं। इसका कारण यह है कि सुषुम्नास्थचेष्टावह कोशाओं में से कुछ पर भिन्न भिन्न स्थानों पर विषाणु आक्रमण करता है सब पर या लगातार नहीं यह अवलोकन से भी पुष्ट हुआ है। विषाणु या तो लसवहाओं द्वारा फैलता है या वातनाडियों के अक्षरम्भों (axis cylinders) से। जो भी अंगघात इस रोग में देखा जाता है वह श्लथघात ( flaccid type of paralysis ) होता है जिसे अधोचेष्ट चेतैकघात ( lower
motor neurone type of paralysis ) कहते हैं । यह भी नहीं भूलना है कि सुषुम्ना में जितने विस्तृत विक्षत देखे जाते हैं उनके अनुपात में अंगघात नहीं होता।
यह अंगघात शीघ्र पूरा हो जाता है, पर कुछ ऐसे भी रोगी पाये गये हैं जिनमें अंगघात उत्तरोत्तर बढ़ता गया हो और जिसने सम्पूर्ण सुषुम्नाकांड को ही ग्रसित कर लिया हो उसे लैण्ड्रीय आरोही अंगघात ( landry's ascending paralysis ) कहते हैं । इस रोग में सर्वप्रथम टाँगें या एक टांग एक बाहु में घात होता है फिर वह पशुकान्तरिकाओं ( intercostals ) का घात करता है और अन्त में महाप्राचीरा पेशी का वध करके श्वसन क्रिया घात कर मृत्यु कर देता है।
रोगोत्तर प्रभाव यह होता है कि एक अंग में श्लथधात हो जाता है और दूसरी ओर के अंग की अपेक्षा यह अंग दुबला होता है उसकी वृद्धि बिल्कुल होती नहीं है तथा एक वर्ग की पेशियों का घात होने से उनके विरुद्ध कार्य करनेवाली पेशियों की अविरुद्ध उतिक्रिया (unopposed overaction ) के कारण सांकोच ( contractures ) दिखलाई देते हैं। ___ इस रोग में प्रभावित अंग या अंगों में शूल (pain) होता है जो रोग की तीव्रावस्था की प्रमुख घटना है। कभी मन्द मन्द शूल होता है जो अकस्मात् तीव्र हो जा सकता है। इस शूल का कारण पश्चमूलप्रगण्डों या पश्चमूलों में विक्षतों की उपस्थिति है। पर यह स्मरणीय है कि इन अंगों में वास्तविक संज्ञानाश ( objective sensory loss ) नहीं होता।
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