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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव ग्रीवा या पृष्ठ की स्तब्धता ( rigidity ) के वही कारण हो सकते हैं जो मस्तिष्कछदपाकस्थ स्तब्धता के कहे गये हैं। इस मत को कई नहीं भी मानते। .
सुषुम्नाशीर्षकीय प्रकार में जो विक्षत होते हैं वे सुषुम्ना में भी प्रायशः मिलते हैं परन्तु विनीपेग की एक महामारी में सुषुम्नास्थ एक भी विक्षत देखने को नहीं मिला था। अन्य विक्षत मस्तिष्ककाण्ड तथा ऊष्णीषक में देखे जाते हैं। कभी कभी सुषुम्नाशीर्ष के साथ सुषुम्ना के ऊर्ध्वभाग में स्पष्ट विक्षत देखे जाते हैं परन्तु सौषुनिक घात बिलकुल भी नहीं पाया जाता। कभी कभी सुषुम्नाशीर्षक में कोई विक्षत न मिलने पर भी सुषुम्नाशीर्षघात देखे जाते हैं। यह सब प्रकृति की निरूढ़ रचनाओं के प्रमाण हैं परन्तु शनैः शनैः वैज्ञानिक एक एक पृष्ठ करके प्रकृति की पुस्तक को खोलकर पढ़ रहा है यह कोई नहीं कह सकता कि कितने काल में वह इसे बाँच लेगा या उससे पूर्व ही एटम बम की ध्वंसकारिणी शक्ति के प्रभाव से रसातल को चला जायगा। कुछ भी हो, सुषुम्नाशीर्षक के कारण जो घात दिखाई देते हैं उनमें अर्दित ( facial palsy ) टेरता ( strabismus) और श्वसनकार्य का घात मुख्य हैं। श्वसनकार्य के घात का कारण पर्युकान्तरिकाओं तथा महाप्राचीरा पेशी का घात भी होता है जो सदैव मिलता है। सुषुम्नाशीर्षकस्थ विक्षतों के कारण तीव्र वायुक्षुधा ( intense air hunger ), नासा द्वारा तरल सूंघने की अशक्ति तथा ग्रसनी (गला) में झागदार पदार्थ का भर जाना ये तीन लक्षण विशेषतः दिखाई पड़ते हैं। यह भी विस्मरणीय नहीं है कि इस रोग में लक्षण और विक्षतों में गूढ सम्बन्ध सदैव नहीं मिलता।
प्रमस्तिष्कीय प्रकार के सुषुम्नाधूसरद्रव्यपाक की कल्पना करना ही अशुद्ध है। यदि किसी बन्दर के प्रमस्तिष्क में इस रोग के विषाणुओं का प्रवेश भी किया जाय तो विक्षत प्रमस्तिष्क में न बनकर मस्तिष्ककाण्ड और सुषुम्ना में ही बनते हैं। इस प्रकार का वर्णन १८५५ ईसवी में स्टूम्पैल ने किया था पर तब से अब तक गंगा जी का बहुत सा पानी बनारस के पुल को पार कर चुका है और उस प्रकार का वर्णन आज कुछ अनुपयुक्त या अयुक्तियुक्त लगता है। ___ यदि इस रोग में मस्तिष्क सुषुम्नाजल ( मस्तिष्कोद) का विचार किया जावे तो हम देखते हैं कि उसमें जो परिवर्तन होते हैं वे विकारप्रदर्शक न होते हुए भी निदान के लिए बहुत लाभदायक होते हैं । मस्तिष्कोद में निम्न परिवर्तन देखने को मिलते हैं
१. उसका निपीड ( Pressure ) बढ़ जाता है। २. मस्तिष्कोद स्वच्छ होता है या घिसे काँच की आकृति का होता है । ३. कुछ रुग्णों में (सब में नहीं) यदिमक मस्तिष्कछदपाक के समान तन्त्वि का
जाला (web) बन जाता है । यह लक्षण मस्तिष्कपाक में कदापि नहीं मिलता। ४. रोग की पूर्वघातावस्था में कोशा अधिक हो जाते हैं तथा कोशाधिक्य के साथ
वर्तुलि की कमी भी हो जाती है।
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