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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव २२३ कारण रोगी पानी तक निगलने में असमर्थ हो जाता है तथा दूसरे के कारण हर समय काँपता रहता है अन्त में श्रान्ति ( exhaustion ) और श्वासकृच्छ्रता (asphyxia) के कारण रोगी मर जाता है। __ आलर्क एक पाव्य विषाणुजन्य रोग है। यदि एक पागल प्राणी के मस्तिष्क का पायस या प्रनिलम्ब (ermulsion) बना लिया जावे और उसे फिर बर्कफील्डपावन द्वारा छान दिया जावे और फिर छने हुए प्रनिलम्ब को किसी अन्य प्राणी की दृढतानिका में या त्वगधः अन्तःक्षिप्त कर दिया जावे तो वह प्राणी भी आलर्क रोग से पीडित हो जावेगा। ___ यह विषाणु क्षतस्थान से वातनाडियों के अक्षरम्भों द्वारा या उनके उपर लगी लसवहाओं (perineural lymphatics-परिचेतीय लसवहाओं) द्वारा केन्द्रिय वात नाडीसंस्थान को जाता है अक्षरम्भ में होकर सी का विषाणु भी जाता है (गुडपाश्चर) इससे इसका भी वही मार्ग होगा ऐसा माना जा सकता है पर पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी । जब विषाणु केन्द्रिय वातनाडीसंस्थान तक पहुँच जाता है तो फिर मस्तिष्क
और सुषुम्ना सभी स्थानों पर शीघ्र ही प्रसरित हो जाता है। वह मस्तिष्कोद में भी मिलता है। यह विषाणु सदैव कर्णमूलग्रन्थि (parotid gland ) द्वारा उत्सृष्ट होता है। इसी कारण प्राणी के लालारस में यह विषाणु उपस्थित रहता है जिससे जब किसी को काटता है तो प्रदुष्ट लालारस (प्रदुष्ट श्लेष्मा) द्वारा वह अन्य प्राणी तक पहुँच जाता है। लालारस के अतिरिक्त अश्रु, दुग्ध तथा सर्वकिण्वी रस में भी वह पाया जाता है।
यद्यपि पाश्चर को इस विषाणु की प्रकृति का कोई ज्ञान नहीं था फिर भी उसने इस सम्बन्ध में बहुत अधिक खोजें की थी। उसने इस विषाणु को शशक में प्रविष्ट कर दिया और देखा कि उसकी उग्रता अत्यधिक बढ़ गई और अब विषाणु केवल एक
सप्ताह में ही रोग प्रकट करने लगा। यह अधिकतम विषता का प्रमाण था। इसे उसने 'वाइरसफिक्से' (virus fixe) कहकर पुकारा था। उसने इस वाइरसफिक्से (सुनिश्चित विषाणु) के द्वारा शशकों के सुषुम्नाकाण्डों को उपसृष्ट करके सुखाने रख दिया । कुछ समय बाद उसने देखा कि सूखे सुषुम्नाकाण्ड में से विषाणु की रोगकारक शक्ति नष्ट हो गई है और १४ दिन सूखने पर तो उनके द्वारा रोग उत्पन्न किया ही नहीं जा सकता। अब उसने इन काण्डों का प्रनिलम्ब ( emulsion) बनाकर प्रतिषेधात्मक चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त किया। उसने विभिन्न काल तक सुखाई हुई सुषुम्नाओं के प्रनिलम्बों का समय-समय पर प्रयोग किया। उसने यह बतलाया कि पागल प्राणी के काटने के ५ दिन के अन्दर यदि इस प्रनिलम्ब का त्वगधः अन्तःक्षेप किया जाता रहे तो शतप्रतिशत रोग से मुक्ति मिल सकती है और रोगी स्वस्थ हो सकता है अन्यथा मृत्यु अनिवार्य है
जलत्रासं तु तं विद्याद्रिष्टं तदपि कीर्तितम् विकृत शारीर का विचार करने और प्रत्यक्ष देखने पर सुषुम्ना और सुषुम्नाशीर्षक में रक्ताधिक्य ही प्रकट होताहै तथा चतुर्थ निलय की भूमि में छोटे-छोटे कुछ रक्तस्राव मिलते
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