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विकृतिविज्ञान सुषुम्ना का आघात तथा उसके अर्बुदों में भी मिलता है तथा कटिवेध के कारण भ कभी कभी हो सकता है।
सी सामान्य (Herpes Simplex ) सी सामान्य तीव्र सज्वरावस्थाओं में (जैसे मस्तिष्कसुषुम्नाज्वर, आन्त्रिक ज्वर, श्वसनक ज्वर, विषम ज्वर, वातश्लैष्मिक ज्वर आदि में ) मल्ल विषता में तथा पृष्ठीय टेबीज ( tabes dorsalis) के वेदनात्मक दारुण्यों ( painful crises ) में प्रायः मिलता है।
इस रोग के उद्भेद ओष्ठ, कनीनिका तथा प्रजननांगों में से कहीं भी देखे जा सकते हैं जिनके कारण इसके ओष्ठीय सी ( herpes labialis), कनीनिकीय सी ( herpes cornealis ) तथा प्रजननाङ्गीय सी ( herpes genitalis ) आदि नाम पड़ गये हैं। सज्वरसी ( herpes febrilis ) भी एक नाम है। ऐसा ज्ञात होता है कि इस रोग का विषाणु छिपा हुआ शरीर में पड़ा रहता है और जब किसी तीव्र रोगाणु का आक्रमण होता है और शरीर की शक्ति कम हो जाती है तो यह भी अपना रूप प्रकट कर देता है।
विशिष्ट सी से सी सामान्य में बहुत अन्तर है। क्योंकि यह पुनः पुनः हो सकता है। इसका विस्तार नाडीखण्डों के अनुसार नहीं चलता तथा यह उभय पार्श्विक ( bilateral ) रोग है। इसका विषाणु एक प्राणी से दूसरे प्राणी को सरलता से पहुँचाया जा सकता है। यह पाव्य होता है और यदि एक शशक की कनीनिका में अन्तःक्षिप्त ( inoculated ) कर दिया जावे तो यह उसमें घातक मस्तिष्कपाक उत्पन्न कर देता है। गुडपाश्चर ने इस विषाणु का मार्ग अन्तःक्षेप स्थल से संज्ञावह नाडियों तक तथा वहाँ से संज्ञावह नाडीकोशाओं तक (पश्चमूल प्रगण्डों तथा मस्तिष्क में ) खोज निकाला है। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि व्यापक मस्तिष्क पाक का विषाणु इसी विषाणु की अत्युग्र प्रतिमा है पर इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है।
अब हम वातनाडीपाक ( neuritis) जिसे चेतापाक भी कहते हैं का वर्णन कर इस प्रकरण को समाप्त करेंगे।
वातनाडी या चेतापाक ( Neuritis ) वातनाडीपाक दो प्रकार का हो सकता है। एक वह जो विशुद्ध वात उति में हो जिसे वातनाडी जीवितकपाक ( parenchymtous neuritis) कहते हैं तथा दूसरा वातनाडीतन्तुओं को बाँधने वाली संयोजी ऊति या अन्तरालित ऊति का पाक । इसे अन्तरालित पाक ( interstitial neuritis) कहते हैं। यदि पाक एक नाडी में हुआ तो उसे एक नाडीपाक ( mononeuritis ) कहते हैं पर जब वह कई नाडियों में एक साथ होता है तो वह बहुनाडीपाक (polyneuritis ) कहते हैं।
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