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विकृतिविज्ञान ५. रोग जब घातावस्था में आता है तो कोशा कम होने लगते हैं और वर्तुलि __ बढ़ने लगती है। ६. कोशा लसीकोशा ही होते हैं परन्तु प्रारम्भिक अवस्था में ५० प्रतिशत तक
बहुन्यष्टिसितकोशा भी मिल सकते हैं। ७. शर्करा और नीरेय अप्रभावित रहते हैं।
सुषुम्नापाक ( Myelitis) तीव्र सुषुम्नापाक या सुषुम्नाकाण्ड का व्रणशोथ एक विरल रोग है। यह आघातजन्य या औपसर्गिक दोनों प्रकार का हो सकता है। आघातजन्य प्रकार उसी समय होता है जब सुषुम्ना में कोई आघात हो औपसर्गिक प्रकार तब होता है जब कहीं अन्य स्थान में उपसर्ग उपस्थित हो और वहाँ से अन्तःशल्य चलकर सुषुम्ना में बस जावे । हृदन्तःपाक (endocarditis) से पूयिक अन्तःशल्य ( septic emboli ) चलकर अग्रसौषुनिक धमनी द्वारा सुषुम्नाकाण्ड में पहुँचती है। अन्य औपसर्गिक रोगों के द्वारा भी सुषुम्नापाक हो जा सकता है जिनमें व्यापक मस्तिष्कछदपाक, उष्णवात, रोमान्तिका, रोहिणी, प्रतिश्याय ( influenza), शोणत्वग्ज्वर (लोहित ज्वर scarlet fever ), शीतला ( smallpox ), आन्त्रिकज्वर आदि उल्लेख्य हैं। फिरंग ( syphilis ) के कारण भी यह रोग हो सकता है। एक तीसरा प्रकार वैषिक (toxic ) भी देखा जाता है अर्थात् वानस्पतिक विष जिनमें धान्यरुग् ( ergot ) तथा त्रिपुट ( lathyrus ) द्वारा उत्पन्न विषता मुख्य है तथा खनिज विष सीस तथा मल्ल ( arsenic ) इनके द्वारा भी यह रोग बन सकता है। उपसर्ग महास्रोतस्थ लसवहाओं द्वारा ले जाया जाता है। कभी कभी उपसर्ग की प्राथमिक नाभि का कोई पता नहीं चल पाता। ऐसी दशा में कौन रोगाणु रोग का कर्ता है वह ज्ञात नहीं हो सकता क्योंकि सुषुम्ना में जीवाणु सजीवावस्था में नहीं मिल पाते। कभी कभी माला और पुंजगोलाणु वहाँ पाये जाते हैं पर वे मूल रोगाणु न होकर गौण प्रतीत होते हैं।
सुषुम्नापाक को दो प्रकारों में विभक्त करने की प्रथा है । एक प्रसर सुषुम्नापाक ( diffuse myelitis या disseminated myelitis) तथा दूसरा अनुप्रस्थ सुषुम्नापाक ( transverse myelitis)। अनुप्रस्थ सुषुम्नापाक बहुधा देखने में आता है और इसमें सुषुम्ना के तीन या चार खण्ड प्रभावित हो जाते हैं। व्रणशोथ इसमें सुषुम्नाकाण्ड के आरपार ( across ) होता है। प्रसरसुषुम्नापाक सम्पूर्ण सुषुम्नाकाण्ड में इतस्ततः फैला हुआ मिलता है। यदि इस रोग से पीडित प्राणी की सुषुम्ना को मेज पर रखकर हाथ फेरा जाय तो प्रभावित भाग मृदु लगते हैं और वे चिपिटित ( flattened ) हो जाते हैं । उसे काटने पर श्वेत और धूसर पदार्थों में अन्तर पूर्णतः लुप्त हो जाता है। वहाँ भी मृदुल क्षेत्र ( areas of softening) मिल सकते हैं तथा इतस्ततः रक्तस्राव भी देखे जाते हैं। जीर्ण रुग्णों की सुषुम्ना
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