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विकृतिविज्ञान
हो जाते हैं क्योंकि श्यामपत्रिका मुकुलतन्त्रिकेतरनाडीमार्ग का एक स्टेशन है । परन्तु घातकम्प ( paralysis agitans ) नामक रोग में विक्षत राजिलपिण्ड में होते हैं ।
संज्ञाविक्षोभ ( sensory disturbances ) - वातिकशूल ( neuralgia ) व्यापक मस्तिष्क पाक के साथ इतना होता है कि कुछ लेखकों ने तो इसे वातिक प्रकार का ही मान लिया है। एक रोगी के हाथों और पैरों में घोर शूल देख कर उसे परिणाही वातनाडीपाक ( peripheral neuritis ) समझ लिया गया था पर जब उसे सुषुप्ति आदि लक्षण ३ सप्ताहोपरान्त मिले तो मस्तिष्कपाक का सन्देह हुआ। कभी कभी इस रोग में उदरशूल हो जाता है जिसके कारण वैद्य उण्डकपुच्छपाक का सन्देह कर सकते हैं । विनीपेग की दूसरी महामारी में सिर और चेहरे पर शूल अनेकों ने बतलाया था । इन गड़बड़ों के विक्षत कहाँ हो सकते हैं यह नहीं कहा जा सकता । वे वातनाड़ियों की पश्चमूलों से लेकर आज्ञाकन्द ( thalamus ) तक कहीं भी देखे जा सकते हैं ।
मस्तिष्क पाक ख (Encephalitis B )
१९३३ ई० में सेण्टलुई और उसके आस पास मस्तिष्कपाक की एक और महामारी फैली थी जिसे मस्तिष्कपाक ख कहा गया है । इस रोग का प्रारम्भ आकस्मिक होता है, जिसके साथ माथे में और शिखर पर घोर वेदना होती है । २४ घण्टे शिरःशूल के पश्चात् रोगी तन्द्रा ( stupor ) में चला जाता है, ज्वर और ग्रीवाकाठिन्य बराबर चने रहते हैं । लगभग पञ्चमांश रोगियों में वमी, उदरशूल और हल्लास किंसैल्ला और ब्राउन ने बताया है । मृत्यूत्तर परीक्षा करने पर ग्रहणीपाक ( duodenitis ) भी कहीं कहीं देखा गया है । घातक रोगियों में प्रतिश्यायसम श्वसनक भी पाया गया है मस्तिष्कोद में कोशागणन ५० से १०० तक तथा शर्करा ६० से १०० मिली ग्राम तक पाई गई है । इस रोग में और व्यापक मस्तिष्कपाक में अन्तर इतना ही रहता है कि इसमें सुषुप्ति ( somnolence ) नहीं मिलती, आक्षेप प्रायः देखे जाते हैं, नेत्रचेष्टनी नाडी का घात नहीं मिलता, अन्य उपद्रव कोई नहीं देखा जाता । इसके विक्षत मस्तिष्क में मिलते हैं मध्यमस्तिष्क में नहीं मिलते | इस रोग का कर्ता एक निश्चित प्रकार का विषाणु होता है जिसका ज्ञान प्राप्त कर लिया गया है ।
तीव्रौपसर्गिक मस्तिष्कसुषुम्नापाक
(Acute infective Encephalomyelitis)
आधुनिक काल में बहुधा ऐसा देखा गया है कि यदि किसी को किसी रक्षाणु लसी (prophylactic vaccine) का अन्तःक्षेपण किया जावे तो कुछ रोगियों में मस्तिष्कपाक हो जाता है । रोमान्तिका, शीतला और क्षुद्रमसूरिका से ग्रस्त रोगियों में भी यह मस्तिष्कपाक देखा जाता है । शीतला या आलर्क रक्षार्थ प्रयुक्त लस द्वारा भी यह होता है । इसी से इसे लसोत्तरीय मस्तिष्कपाक ( post-vaccinal
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