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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव २०६ विपरीत सविराम आक्षेप ( olonic spasms ) होते हैं। इन्हीं आक्षेपों के कारण विनीपेग में व्यापक मस्तिष्कपाक के साथ साथ हिक्का का भी व्याप देखा गया था जिसका कारण उदरदण्डिका में प्रचण्ड संकोचनों की उपस्थिति थी। यह हिक्का रोगियों तथा चिकित्सकों दोनों में ही देखी गयी थी और वह एक से पाँच दिन लगातार इस जोर से रही कि सोना तक दूभर हो गया था। इकोनोमो के एक रोगी को तो यह हिक्का एक मास तक रही थी। हिक्का का यह व्याप दूसरी महामारी में प्रगट नहीं हुआ।
इन आक्षेपों का समाधानकारक कारण अभी तक नहीं मिला। पर ऐसा लगता है कि उनका हेतु सौषुम्निक नाडी मूलों (spinal roots) का प्रक्षोभ रहा होगा क्योंकि साथ साथ वातनाडी. की परिणाही अथवा मूलीय वेदना भी देखी जाती थी। क्रियाओं के जो इतने विक्षोभ देखने में आते हैं उनका कारण मुकुलतन्त्रिकेतर संस्थान ( extrapyramidal system ) का विक्षोभ हो सकता है। रामजेहण्ट का कथन है कि मस्तिष्कपाक में जो चेष्टाविक्षोभ होता है उसका कारण राजिलपिण्ड ( corpus striatum) में विक्षतों का होना है। राजिलपिण्ड के २ भाग रचनात्मक दृष्टि से होते हैं एक प्राचीन जिसे शुक्तिगर्भ (globus pallidus ) कहते हैं इसमें विक्षत होने से पेशीकाठिन्य और कम्प ( tremors ) होते हैं तथा दूसरा नया जिसमें शुक्तिपीठ (putamen) और शफरीकन्द (caudate nucleus) सम्मिलित हैं इनमें विक्षत होने से अनेक आक्षेप आते रहते हैं और गतियों का नियन्त्रण समाप्त हो जाता है । परन्तु हण्ट के उक्त विचार की पुष्टि इस रोग में कहीं से भी नहीं होती।
जो मत इस समय चल रहा है उसके अनुसार मस्तिष्कपाकोत्तरीय कम्पवात ( post encephalitic Parkinsonism ) का कारण श्यामपत्रिका (substantia nigra.) में प्रधान विक्षत का होना है। होहमैन के परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि इस रोग में श्यामपत्रिका की श्यामता कई स्थलों पर उड़ जाती है और नाडीसूत्र नष्ट हो जाते हैं, श्यामपत्रिका में जितना आघात होता है उतना अन्यत्र नहीं देखा जाता है। श्यामपत्रिका के पश्चात् जिन अंगों पर प्रभाव पड़ता है वह आघात की उग्रता की दृष्टि से क्रमशः राजिलपिण्ड का नव भाग फिर प्राचीनभाग फिर प्रमस्तिष्कीय बाह्यक ( cerebral cortex) तथा मध्यमस्तिष्क का कुथवितान ( tegmentum) है। इन क्षेत्रों में कोशाविहास के चिह्न कोशाओं का आसंकोचन ( shrinkage ), प्रविलयन ( dissolutions ) तथा नाडी कन्दाणुभक्षता ( neuronophagia) है। नाड़ी तन्तुओं में सूजन से लेकर श्वेतद्रव्यक्षेत्रों का पूर्ण विलोपन तक देखा जाता है। यह सब जीर्णावस्था में मिलता है तथा रोग की तीव्रावस्था में केवल परिवाहिन्य विक्षत मिलते हैं।
संक्षेप में हम इतना कह सकते हैं कि मस्तिष्कोत्तर कम्पवात या पार्किन्सोनीयता में श्यामपत्रिका के विनाश के कारण पेशी काठिन्य और कम्प ( tremors) उत्पन्न
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