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विकृतिविज्ञान
वह कणदार हो जाती है । उसका तल प्रायः भीगा और थूक से ढका होता है। कभी कभी वह सूखा भी मिल जाता है।
वास्तव में इस रोग में उपश्लेष्मलकला ( submucosa) की रक्तवाहिनियाँ, तान्तव ऊति और लसाभ ऊति सबकी परम पुष्टि प्रारम्भ होती है इस कारण इस भाग में बहुत से परम पुष्टभाग देखे जाते हैं। इन्हीं में मिले हुए कुछ अपुष्ट क्षेत्र भी देखे जाते हैं।
आमाशयपाक ( Gastritis ) __ आमाशय में तीव्र और जीर्ण दोनों प्रकार का व्रण शोथ मिल सकता है। आमाशयिक व्रणशोथ का प्रधान कारण प्रक्षोभ हुआ करता है। आहार के द्वारा जीवाण्विक विषियां ( bacterial toxins ) पहुंच जाने से या प्रक्षोभकारक पदार्थ जैसे रासायनिक विषों ( poisons ) के खाने से या अन्य उसी प्रकार के किसी कारण से आमाशय में पाक ( inflammation ) देखा जाता है । सौम्य व्याधि में अधिरक्तता तथा उग्र व्याधि में ऊतिमृत्यु देखी जाती है। मालागोलाणुओं ( streptococci ) के द्वारा कभी कभी समग्र आमाशय कोप (acute phlegmonous gastritis) नामक व्याधि देखी जाती है। इसमें आमाशय की सम्पूर्ण प्राचीर शोथपूर्ण एवं मोटी हो जाती है। उसमें पूयन का प्रारम्भ होने के कारण अनेकों विधियाँ आमाशय की श्लेष्मलकला पर प्रकट हो जाती है। उनके कारण उदरच्छदपाक (peritonitis) तक होता हुआ देखा जाता है। अजीर्ण, मद्यपान, प्रसूति ज्वर (puerperal fever) आमाशयिक व्रण (gastric ulcer ) तथा आमाशय पर किया गया शस्त्रकर्म ( operation ) आमाशयपाक के कुछ अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं। समग्र आमाशय कोप में सर्वप्रथम आमाशय की उपश्लेश्मलकला पर प्रभाव पड़ता है जिसके पश्चात् सम्पूर्ण प्राचीर रोग ग्रस्त हो जाती है।
तीव्र आमाशयपाक (acute gastritis) को आमाशयिक पीनस (gastric influenza ) या तीव्र प्रसेकी आमाशयपाक ( acute catarrhal gastritis ) भी कहते हैं। दुष्पाच्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करने से या अत्यधिक मद्यपान के कारण यह रोग हो सकता है। लोहित ज्वर (scarlet fever) रोगाणुरक्तता (septicaemia ) तथा अन्य उपसर्गकारी जीवाणु भी इसके कारक हैं। मूत्ररक्तता (uraemia) के विषि आमाशय में उत्सृष्ट होकर भी इसे उत्पन्न करते हैं। युद्ध काल में क्षोभकारी वातियों ( irritant gases) से मिश्रित लाला रस के द्वारा भी आमाशय पाक सम्भव है। आमाशय की श्लेष्मल और उपश्लेष्मलकला में व्रणशोथ के सब लक्षण प्रकट हो जाते हैं। जिनके कारण हृल्लास ( nausea.) एवं वमी ( vomiting ), आध्मान, अरुचि, अग्निमान्द्य, उद्गारबाहुल्य तथा आमाशयशूल प्रधानतया देखे जाते हैं। रोग की सौम्यता लक्षणों की भी सौम्यता कर देती है। जब श्लेष्मलकला में अत्यधिक विक्षत हो जाते हैं तब वमन के साथ रक्त भी जाने लगता है। साधारणतया इस रोग में विबन्ध (consti
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