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विकृतिविज्ञान मस्तिष्कसुषुम्नाजल-इसे मस्तिष्कोद या मस्तिष्कमेरुतरल ( cerebrospinal fluid ) भी कहते हैं । यह एक हृषदर्पण है जिसमें वात व्याधियों के असंख्यचित्र प्रतिबिम्बित होते हैं। ये चित्र पूर्णतः स्पष्ट भी हो सकते हैं और अस्पष्ट भी। अतः स्वस्थ मस्तिष्कोद का वर्णन पहले आवश्यक है।
मस्तिष्कोद का उदासर्ज झल्लरीप्रतान ( choroid plexus) द्वारा होता है। विशेष करके पार्श्वनिलयों ( lateral ventricles ) में । वहाँ से यह तृतीय निलय, मध्यमस्तिष्कमार्ग ( aqueduct of midbrain), चतुर्थ निलय को पार करता हुआ चतुर्थ निलय की छत में स्थित छिद्रों द्वारा उपजालतानिकीय अवकाश ब्रह्मोद. कुल्या ( subarachnoid space ) में पहुँच जाता है। यह मस्तिष्क के आधार पर स्थित बड़े बड़े जलाशयों में बहता हुआ जवनिकाख्य मस्तिष्कावरणी कलाखात ( incisura in the tentorium ) और मध्यमस्तिष्क के तंग मार्ग से होकर ऊपर की ओर उपजालतानिकीय झील में फैल जाता है यहाँ जालतानिका के अंकुरो ( arachnoid villi ) द्वारा जो छोटे छोटे अन्धकूपों का कार्य करते हैं और जिनका सम्बन्ध बड़ी बड़ी सिराओं से खास करके उपरि अनुदीर्घसिरा ( superior longitudinal sinus ) से होता है यह जल रक्त में मिला दिया जाता है। यह जल नीचे सुषुम्ना में अन्तिमकटिकशेरुका के निचले सिरे तक जाता है।
मस्तिष्कधमनियों को उपजालतानिकीय अवकाश (ब्रह्मोदकुल्या) में होकर जाना पड़ता है और उनके साथ मृदु-जालतानिका का एक कंचुक ( a sheath of pia-arachnoid ) रहता है जो उपजालतानिकीय अवकाश का ही एक विस्तार मात्र होता है। यह कंचुक इन वाहिनियों के साथ उनकी सूक्ष्म से सूक्ष्म शाखा के के साथ भी लगा रहता है और यह मस्तिष्कवाहिनियों के बाह्य और मध्य चोलों के बीच के अन्तराल के साथ संतत हो जाता है इन अन्तरालों को वरकाउ-रोबिन अवकाश ( Virchow-Robin spaces ) कहते हैं। इस प्रकार व्रणशोथकारी कोशा सरलतापूर्वक ब्रह्मोदकुल्या में पहुँच जाते हैं। यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि मस्तिष्क मस्तिष्कोद द्वारा अतिवेधित (permeated ) और अनुविद्ध ( saturated ) रहता है। इसी कारण जब इसकी कमी हो जाती है तो तृषातुर मस्तिष्क रक्त के कम हो जाने के कारण सिकुड़ जाता है तथा बहुत बड़ी मात्रा में एक स्पक्ष की भांति तरल को सोख लिया करता है।
इस सम्पूर्ण क्रिया में जालतानिका (नीशारिका ) के अंकुरों का बहुत अधिक महत्त्व है। कुशिंग के विचार से उदशीर्ष ( hydrocephalous) नामक रोग में मस्तिष्क में अत्यधिक जल वृद्धि का कारण इन अंकुरों के तरल प्रचूषण कार्य में विकार का होना अधिक है न कि तरल के निर्गमन मार्ग में बाधा का होना। यदि इन अंकुरों के पावन ( filter ) को ( मस्तिष्काधारी जलाशयों में काजल प्रविष्ट करके) निग (plug ) कर दिया जावे तो एक चिरकालीन उदशीर्ष उत्पन्न किया जा सकता है ( वीड)।
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