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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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को निलयों से पृथक् बन्द कर दिया जावे तो उसके गोलाणु मर जाते हैं, पर निलयों में वे सजीवावस्था में मिलते हैं इसका स्पष्ट अर्थ तो यह है कि निलयों से गोलाणु बराबर मिलते रहने चाहिए इसी आधार को लेकर ल्यूकोविक्ज कहता है कि तानिकाओं ( meninges ) के द्वारा रोग का प्रसार नहीं होता और न रोगाणु तानिकाओं को आधार मान कर चलते हैं, अपि तु निलय ब्रह्मोदकुल्यीय संस्थान तक रोगाणु झल्लरीप्रतान ( choroid plexus ) द्वारा पहुँचते हैं । रोगाणुरक्तता ( septicaemia ) के परिणामस्वरूप एक विस्थायिक नाभि ( metastatic focus ) झल्लरी प्रतान में उत्पन्न हो जाती है जैसा कि मालागोलाणु या पुंजगोलाणुजनित रोगाणुरक्तता में वृक्ककेशिकाजूटों में विस्थायिक नाभियां बन जाती हैं । इसका परिणाम यह होता है कि पहले एक झल्लरीप्रतानपाक ( choroiditis ) हो जाता है फिर अध्यस्त र पाक ( ependymitis ) होता है । अध्यस्तर ( ependyma ) पर उसी प्रकार रोगाणु बस जाते हैं जिस प्रकार श्वसनमार्ग के धरातल पर प्रारम्भ में बसते हैं । एक व्रणशोथात्मक स्राव वहां उत्पन्न हो जाता है और गोलाणु तथा पूय दोनों मस्तिष्कोद के प्रवाह से पहले मस्तिष्काधारस्थ जलाशयों ( basal cisterns ) को पहुँचते हैं उसके पश्चात् कुछ तो प्रमस्तिष्कीय ब्रह्मोदकुल्या में और कुछ सौषुम्निक प्रावर में पहुँच जाते हैं। शिशुओं में विशेष कर बोतलपायी शिशुओं में मस्तिष्क बहुत मृदुल होता है जिसके कारण मस्तिष्क सीताओं की उदुब्जता (Convexity of the sulci ) चिपिटित संवेल्लनों ( flattened convolutions ) द्वारा बन्द कर दी जाती है इस कारण स्राव सब मस्तिष्काधार के जलाशयों में एकत्रित हो जाता है इस कारण मस्तिष्कछदपाक पश्चाधारीय ( posterio basic type ) होता है । शिशुओं में मस्तिष्कछदपाक का यही स्वरूप प्रायः देखने को मिलता है । उनके मस्तिष्क में जब अन्तः निपीड़ अत्यधिक बढ़ जाता है तो उनकी ग्रीवा प्रत्याकृष्ट ( retracted ) हो जाती है कभी कभी पश्चतान ( opisthotonus ) देखा जाता है जब कि शिशु सिर और पैरों पर ठहर जाता है तथा बीच का भाग अकड़ जाता है ।
मस्तिष्क और सुषुम्ना की आकृति इस रोग में रोग के काल का अनुसरण करती है । स्फूर्त रोग ( fulminant case ) में जहां रुग्ण २४ से ४८ घण्टे के भीतर मरता है स्राव की मात्रा स्वल्प होती है तथा जहाँ कुछ सप्ताहों तक रोग रहता है वहाँ स्राव बहुलता से मिलता है । करोटि-टोपी को उतार देने पर दृढ़तानिका aa और उत्फुल्ल ( bulging ) मिलती है मस्तिष्कछदीय वाहिनियों में बहुत अधिक अधिरक्तता पाई जाती है । दृढ़तानिका को काट देने पर ब्रह्मोदकुल्या ( subarachnoid space ) में आहरित पीत वर्ण का चल मात्रा में (in varying amount ) स्राव निकलता है । इसका मार्ग वाहिनियों की दिशा में होता है वह पार्श्विक पिण्ड ( parietal lobe ) के ललाट्य और अग्रभागों में अधिक देखा जाता है जब मस्तिष्क को काट कर अलग कर दिया जाता है तो मस्तिष्काधार पर
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