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विकृतिविज्ञान और भी अधिक स्राव या उत्स्यन्द (exudate ) देखा जाता है जो मृणालान्तराल को भर देता है और आगे दृष्टिनाडी के साथ साथ जाता है, पीछे बड़े जलाशयों (cisterns) तक जाता है और ऊपर मध्य और अग्र प्रमस्तिष्कीय धमनियों के साथ साथ मस्तिष्क के ऊपरी भाग ( vertex) तक जाता है। इसी स्राव या उत्स्यन्द द्वारा सौषुम्निक जालतानिकीय अवकाश (arachnoidal space) भी भर जाता है पर यह भरने का कार्य साश्चर्य सुषुम्ना के पश्वभाग की ओर ही देखा जाता है। सुषुम्ना के अग्रभाग की तानिकाओं की प्रथा नष्ट हो जाती है स्रावाधिक्य नहीं देख पड़ता। जब मस्तिष्क को खोला जाता है तो, नियमतः निलय विस्फारित ( dilated ) मिलते हैं उनमें आविल ( turbid ) तरल भरा रहता है। झल्लरीप्रतान अधिरतीय हो जाता है या उसका वर्ण मन्द धूसर हो जाता है। निलयों का धरातल जिसे हमने अध्यस्तर (ependy. ma) कहना प्रारम्भ कर दिया है रूक्षीभूत (roughened ) हो जाता है । वयस्कों की अपेक्षा बालकों में एक तीव्रस्वरूप का घातक उदमस्तिष्क ( hydroce. phalous) भी देखा जाता है। उसका हेतु मस्तिष्क की मृदुलता (softness of the brain) मानी जाती है। मृदुलता के कारण तरल के प्रवाहन में तथा प्रचूषण में बाधा पड़ती है और मस्तिष्कोद बाहुल्य हो जाता है।
ऊपर हमने प्रत्यक्ष क्या देखा जा सकता है उसी को बतलाया है अब हम अण्वीक्षतया ( microscopically ) क्या प्रकट होता है उसे लिखते हैं । इस दृष्टि से हम ब्रह्मोदकुल्या को व्रणशोथात्मक उत्स्यन्द से परिपूर्ण पाते हैं। उस में प्रधानतया बहन्यष्टि सितकोशा पाये जाते हैं साथ में कुछ लसीकोशा तथा कुछ बड़े एकन्यष्टि भक्षिकोशा भी मिलते हैं। इन भक्षिकोशाओं में से कुछ के उदर में खाये हुए कोशा देखे जाते हैं परन्तु अधिकांश के उदर में तो एक रसधानी ( vacu. ole) ही देखने में आती है। आगे चल कर ये कोशा और भी अधिक संख्या में मिलते हैं। उत्स्यन्द में तन्त्वि बहुत कम और कभी कभी ही पाई जाती है। स्राव (उत्स्यन्द) में रुधिराणु पर्याप्त होते हैं। सितकोशाओं के बाहर और भीतर दोनों अवस्थाओं में मस्तिष्कगोलाणु पाये जाते हैं। परन्तु ये गोलाणु तो मस्तिष्कोद से लिप्त पट्टों ( smears made from the cerebrospinal fluid) के द्वारा अधिक स्पष्ट देखे जाते हैं।
मस्तिष्क जाने कैसे सुबद्ध ( intact ) रहता है । सीताओं में स्राव बहुत अधिक रहता है और वहाँ से वह ब्रह्मोदकुल्या के परिवाहिनीय प्रलम्बनों (perivascular prolongations of subarachnoid space ) में कुछ दूर तक भरा रहता है परन्तु मस्तिष्कऊति का या रक्त की तानिकाओं द्वारा उपसृष्ट होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता जो मस्तिष्क के लिए सत्य है वही सुषुम्ना के लिए भी ठीक उतरता है । यदि कहीं व्रणशोथ मिलता है तो वह केवल अध्यस्तर में। इन तथ्यों को देखने से यह सिद्ध हो जाता है कि उपसर्ग प्रथमतः झझरीप्रतान से ही प्रारम्भ होता है। सपूयिक
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