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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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उपसर्ग के मार्ग केन्द्रिय वातनाड़ी संस्थान में उपसर्ग पहुँचने के ३ प्रधान मार्ग हो सकते हैं :
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१ - रक्तधारा के द्वारा, २ - लसधारा के द्वारा, तथा ३ - अक्षरम्भों के द्वारा,
उरःक्षत ( bronchiectasis ), हृदन्तःपाक ( endocarditis ) के कारण उत्पन्न मस्तिष्क की सकल विद्रधि ( solitary abscess ) का कारण रोगकारक पदार्थों का रक्त धमनियों द्वारा मस्तिष्क में पहुँच जाना है । सूक्ष्मश्यामाकसम विद्रधियों ( miliary abscesses ) का प्रधान कारण रोगाणुरक्तता ( septicaemia ) का होना है जो रक्त के द्वारा मस्तिष्क में इन विद्रधियों को कर देता है ।
यह भी सिद्ध होता है कि जीवाणु और इनके विष मस्तिष्क तथा सुषुम्ना में परिवातनाडीय लसवहाओं ( perineural lymphatics ) द्वारा पहुँचते हैं जिनके प्रधान उदाहरण धनुर्वात और रोहिणी हैं। टील और ऐम्बिल्टन का यह दृढ़ मत है। कि यदि सब नहीं तो थोड़ा तो अवश्य ही धनुर्वात का विष कर्मवाहिनी वातनाडियों ( motor nerves ) के साथ अनुगामिनी लसवहाओं द्वारा जाता है ।
जब उपसर्ग रक्त द्वारा गमन करता है तो सुषुम्ना पर उसका प्रभाव यह होता है कि उसमें विहास होने लगता है और वह फूल जाती है और उसमें काचर घनाखोत्कर्ष हो जाता है । यद्यपि स्थिर ऊतियों में शोथ नहीं आता । पर यदि उपसर्ग का गमन लसवहाओं द्वारा होता है तो स्थिर ऊतियों में शोथ प्रारम्भ से ही रहता है । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कदाचित् अनुतीव संयुक्त सुषुम्ना विहास ( subacute combined degeneration of the cord ) नामक रोग में उपसर्गकारी विष (toxin ) का गमन रक्त के द्वारा ही होता है तथा सुषुम्नाधूसरद्रव्यपाक ( poliomyelitis ) नाम व्रणशोथात्मक व्याधिकारी उपसर्ग का गमन वातनाडियों की रेखा के साथ साथ होता है ।
यह भी सम्भव है कि यह गमन परिवातनाडीय लसवहाओं में होकर न हो और अक्षरम्भों में होकर हो । सर्पीशुद्ध ( herpes simplex ) नामक रोग के विषाणु पर गुडपाश्चर ने जो गवेषणा की है वह भी यह प्रगट करती है कि अक्षरम्भों द्वारा ही उपसर्ग का प्रवेश हो सकता है । धनुर्वात का विष इस मार्ग से जाता है इसमें बहुत कम सन्देह है । वातनाडियों द्वारा रोग का संचार विषाणुजन्य रोगों में प्रायशः देखा जाता है ।
केन्द्रिय वातनाडीसंस्थान के भीतर उपसर्ग किस प्रकार प्रसरित होता है इसके लिए अभी प्रयोगों और खोज की पर्याप्त आवश्यकता है । सुषुम्ना धूसरद्रव्यपाककारी या शुद्ध के विष को जब मस्तिष्क में प्रविष्ट कर देते हैं तो वह सम्पूर्ण मस्तिष्क तथा सुषुम्ना में सर्वत्र प्रसर कर जाता है । अब यह देखना कि इस प्रसरण के कार्य में मस्तिष्कसुषुम्नाजल का प्रमुख हाथ है या वातनाडीय अक्षरम्भों का अभी शेष रह गया है ।
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