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विकृतिविज्ञान क्षुद्र कोष्ठक मिलते हैं जैसे कि स्तनपाक के साथ देखे जाते हैं। ये कोष्ठक ( cysts). बीजग्रन्थि या बीजकोष के धरातल से उठते हुए से दिखाई पड़ते हैं और उनका आकार मकोय के फल से अधिक बड़ा नहीं होता। ये कोष्टक बीजस्यूनिकाओं (gra. ffian follicles ) के अविदारित रहने के कारण उत्पन्न होते हैं, उनमें एक प्रकार का स्वच्छ तरल भरा रहता है और तरल पर पर्याप्त आतति ( tension ) रहती है।
बीजवाहिनीपाक (Salpingitis ) बीजवाहिनियों में तीव्र एवं जीर्ण दो प्रकार के पाक हो सकते हैं । मुख्य पाककारी जीवाणु उष्णवातीय गोलाणु होता है। उसके कारण कम से कम ५० प्रतिशत बीजवाहिनीपाक होता है। अन्य कारकों में यक्ष्मा दण्डाणु, पूयजनक गोलाणु, आन्त्र दण्डाणु आदि आते हैं। कुछ पाक प्रारम्भ में उष्णवातीय गोलाणुजन्य होते हैं तथा बाद में यह गोलाणु मर जाता है और फिर पूयजनक या आन्त्रदण्डाणु उनके स्थान पर पाक के कारण बन जाते हैं। कभी कभी बालाओं की योनि में होकर फुफ्फुस गोलाणु प्रवेश करके बीजवाहिनी पाक करता हुआ फुफ्फुसगोलाण्विक उदरच्छदपाक कर देता है यह भी स्मरण रहना आवश्यक है। उष्णवातीय गोलाणु (प्रमेहाणु) का उपसर्ग गर्भाशयपिण्ड की श्लेष्मलकला से सीधा लगता है। मालागोलाणु या तो प्रसूति कालीन दूषकता के कारण सीधे अथवा लसीकावहाओं द्वारा यहाँ पहुँचते हैं। कभी कभी खास कर यक्ष्मा तथा पूयजनक जीवाणुओं के उपसर्ग का मार्ग उदरच्छदगुहा (peritoneal cavity ) से बीजवाहिनी के पुष्पित प्रान्त ( osteum of the tube ) द्वारा होता है यह उपसर्गकारी अवरोही मार्ग है जब कि पहले आरोही ( ascending ) मार्ग रहे । यक्ष्मा के प्रसार का एक मार्ग रक्त द्वारा भी है।
उष्णवातज उपसर्ग और स्त्रीप्रजननाङ्ग इससे पूर्व कि उष्णवातीय बीजवाहिनी पाक का वर्णन किया जाय यह अस्थानीय नहीं है कि हम उष्णवातीय उपसर्ग (सुजाक ) के प्रसार का थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर लें। पुरुषों की भांति स्त्रियों में उष्णवात का उपसर्ग मैथुन के कारण आता है। जब कोई स्त्री किसी सुजाक से पीडित पुरुष के साथ सम्भोग करती है तो उसे यह उपसर्ग प्राप्त होता है । छोटी छोटी बालिकाओं में यह उपसर्ग दूषित उपकरणों के योनिमार्ग में प्रविष्ट करने से या सुजाकग्रस्त पुरुषों के द्वारा बलात्कार करने पर लग सकता है। बालिकाओं के बाह्य प्रजननाङ्ग सूज जाते तथा पक जाते हैं तथा तीव्रावस्था में श्लेष्म पूयीय स्राव निकलने लगता है। योनिपाक (vaginitis) उनको हो जाता है परन्तु योनिद्वारक ग्रन्थियाँ ( bartholin's glands ) उपसर्ग से बच जाती हैं । युवतियों में बाह्य प्रजननाङ्गों का शल्कीय अधिच्छद बालिकाओं की अपेक्षा उपसर्ग का अधिक प्रतिरोध करता है इस कारण प्रारम्भ में उपसर्ग के कारण तीन मूत्रनालपाक (acute urethritis) हो जाता है तथा कभी कभी परिमूत्रनालीय विद्रधि ( peri urethral abscess ) भी बन सकती है। योनिद्वारक ग्रन्थियों में भी उपसर्ग शीघ्र ही
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