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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव का च्यावन होकर उदरच्छदगुहा में पूय पहुँच कर उष्णवातीय उदरच्छदपाक (gonococcal peritonitis) होता हुआ देखा जा सकता है । यदि उपसर्ग थोड़ा हुआ तो उदरच्छदपाक स्थानिक होता है अन्यथा उसी से सर्वसामान्य उदरच्छदपाक हो सकता है वैसे वह श्रोणिस्थ उदरच्छद तक ही सीमित रहता है। यह उदरच्छदपाक तन्त्विमत् ( fibrinous ) प्रकार का होता है जिसमें पूयन बहुत कम होता है परन्तु उसका तान्तवीभवन हो जाता है जिसके कारण श्रोणिस्थ सम्पूर्ण अंग एक दूसरे से अभिलग्न हो जाते हैं। तन्त्विमत पुंज के भीतर कभी कभी विद्रधियाँ भी बन जाती हैं। ___ कभी कभी पुष्पितप्रान्त की बीजकुल्या बीजकोष से ही अभिलग्न हो जाती है और इस कारण उसका मार्ग बन्द हो जाता है। यदि यह अभिलाग किसी पीतपिण्ड ( corpus luteum) या स्यूनिका (follicle ) के साथ हुआ तो उपसर्ग बीजकोष के अन्तराल तक प्रविष्ट हो जा सकता है जिसके कारण कुल्याकोषीय विद्रधि ( tubo ovarian absecess ) बन सकती है। इस विधि के कारण बीजकोष सम्पूर्णतया विनष्ट हो सकता है अथवा वहाँ तन्तूत्कर्ष होकर उसकी क्रियाशक्ति पूर्णतः समाप्त हो जाती है। ____ कभी-कभी जब उपसर्ग की गति अधिक प्रचण्ड न होकर सौम्य होती है तब पूय धीरे-धीरे पुनषित हो जाता है और एक जीर्ण प्रसेकी व्रणशोथ (chronic catarrhal inflammation ) रह जाता है जिसके कारण बीजवाहिनी के सुषिरक में स्वच्छ तरल संचित होता रहता है। वाहिनी के मार्ग बन्द होते हैं इस कारण इस तरल के बढ़ने से सोदक बीजवाहिनी (Hydrosalpinx ) बन जाती है। वाहिनी (या कुल्या) के समीपान्त ( distal end ) की अपेक्षा दूरस्थभाग ( proximal end ) में उसका विस्फार अधिक होता है। वाहिनी व्रणशोथात्मक अभिलागों के कारण इंठ जाती है और थोढ़ी मुड़ भी जाती है जिसके कारण वह वकभाण्डाकार ( retort-shaped ) हो जाती है। उसकी श्लेष्मलकला चिपिटित और अपुष्ट हो जाती है उसके अंकुरित अग्र बैठ जाते हैं, उसकी प्राचीरें बहुत पतली हो जाती हैं और इस अवस्था को सोदक बीजवाहिनी असंयुक्त ( Hydro Salpinx simplex ) कहते हैं । एक दूसरा प्रकार सोदक बीजवाहिनी स्यूनिकीय ( Hydro Salpinx follicularis) कहलाता है उसमें वाहिनी में अनेक खण्डिकाएँ देखी जाती है इसमें श्लेष्मलकला की वलियाँ ( rugae ) फैल कर और तनकर एक दूसरे से मिलकर अनेक विभाग बना देती हैं जिनमें तरल भरा रहता है। तरल स्वच्छ होता है पर उसमें कुछ सितकोशा भी मिल सकते हैं उसका आपेक्षिक घनत्व कम होता है उसमें थोड़ी शुक्लि भी मिल सकती है। सोदकबीजवाहिनी का आधेय ( contents ) अजीवाणुक होता है पर कभी-कभी आन्त्रदण्डाणु या अन्य रोगाणुओं के द्वारा दूषित भी हो सकता है।
इस चिरकाल से व्रणशोथमय वाहिनियों की विस्फारित प्राचीरों से कभी-कभी
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