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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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के कारण दोनों पूर्णतः पृथक् प्रकृति रखते हैं । इतना समझ लेने पर हम कह सकते हैं। कि केन्द्रिय वातनाड़ी संस्थान चेतक, चेताश्लेष ( ताराश्लेष तथा अल्पचेतालोमश्लेष ) तथा अणुश्लेष नामक ३ द्रव्यों से मिल कर बना है । 'श्लेष' शब्द 'ग्लू' के लिए हिन्दी में प्रयुक्त होता है जिससे ग्लिया ( glia ) बना है । अब हम ताराश्लेष, अल्पचेतालोमश्लेप और अणुश्लेष का वर्णन करते हैं ।
ताराश्लेष- इसी को चेताधारी या चेताश्लेष या वातनाड़ी श्लेष या लूताणुक (neuroglia ) कहते हैं । ताराश्लेष का निर्माण ताराकार कोशाओं (astrocytes) से होने के कारण यह नाम दिया गया है । इसके कोशा दो प्रकार के होते हैं जिनमें एक प्ररसीय ( plasmatic ) और दूसरे तान्तव (fibrous ) । दोनों ही प्रकारों में बहुत बड़े कोशा होते हैं जिनमें अनेकों प्रवर्ध होते हैं। इन प्रवर्धो में से कम से कम एक प्रवर्ध का सम्बन्ध एक स्तूपाकारी विस्तार द्वारा जिसे वाहिनीय पादप ( vascular foot plate ) कहते हैं एक केशाल या रक्तवाहिनी से होता है। कजाल के एक दूसरे योग्य शिष्य अक्रूकैरो ने इसे चूषण साधित्र ( suction apparatus ) नाम दिया है इसे चूषकपाद ( sucker foot ) भी कहा जा सकता है । यह बतलाता है कि ताराकोशा का क्या कार्य हो सकता है । प्रत्येक ताराकोशा के पास कम से कम एक तथा कई-कई ऐसे चूषकपाद होते हैं । तान्तव ताराकोशाओं पर जब कजाल द्वारा प्रयुक्त स्वर्ण उत्साद (gold sublimate) अभिरंजन किया जाता है तो तन्तुकोशा से निकलते ही कोशारस की मृदुल झिल्ली (film) से आवृत हो जाता हुआ देखा जाता है कोशाकाय से स्वतन्त्र तन्तु कोई नहीं निकलता प्रत्येक तन्तु एक प्रवर्ध से दूसरे में चला जाता है और कोशा में होकर अपना मार्ग बना लेता है । एक तन्तु एक परिवाहिनीय आसंजन (perivascular attachment ) से दूसरे में पार हो जाता है और इस प्रकार दोनों वाहिनियों को बाँधे रहता है । तान्तव ताराकोशा श्वेत पदार्थ में मिलते हैं तथा वे मृदुतानिका ( piamater ) के नीचे मस्तिष्क बाह्य के उपरिष्ट घनस्तर में उपरिष्ट सीमा कला (superficial limiting membrane) बनाते हैं । इन ताराकोशाओं के चूषकपाद मृदुतानिका से आसक्त रहते हैं । जो रक्तवाहिनी मृदुतानिका को छोड़कर मस्तिष्क में प्रवेश करती हैं उनके ऊपर इस उपरिष्ट सीमा कला का एक कंचुक चढ़ जाता है जिसे परिवाहिनीय सीमाकला (perivascular limiting membrane ) कहते हैं । इस प्रकार चेतैकों से वाहिनियाँ ताराकोशाओं के एक स्तर के द्वारा पृथक् कर दी जाती हैं। हो सकता है कि वे एक मध्यस्थ का काम करते हैं । जैसा कि चूषण साधित्र नाम से प्रगट होता है ।
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प्ररसीय ताराकोशा सब के सब धूसर पदार्थ में ही प्रायशः पाये जाते हैं, विशेष करके प्रमस्तिष्क बाह्यक ( cerebral cortex ) के मध्य और गम्भीर स्तरों में तथा निमस्तिष्क के जालिकास्तर ( molecular layer of the cerebellum ) में
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