________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२०
विकृतिविज्ञान
जीर्ण दोनों प्रकार के स्वरूप मिल सकते हैं । वैषिक यकृत्पाक का कारण रक्त में होकर किसी विष विशेष का यकृत् पर परिणाम करना है तथा औपसर्गिक यकृत्पाक का कारण किसी उपसर्ग का यकृत तक पहुंचना है। अब हम इस विषय का विवेचन इन्हीं दोनों प्रकारों के अनुसार करते हैं ।
तीव्र वैषिक यकृत्पाक ( acute infective hepatitis ) – यह अत्यधिक घातक स्वरूप की यकृद्विकृति है । इसमें यकृत्कोशाओं में मृत्यु ( necrosis ) हो जाती है । यकृत् के क्षेत्र विशेष के अनुसार इस प्रकार की कोशामृत्यु के विविध नाम दिये गये हैं । इस रोग में कामला ( jaundice ) प्रायः अवश्य हो मिलता है । कामला के दो कारण विशेषतः उल्लेख्य हैं । पहला तो पित्तप्रणालियों का कोशामृत्यु क्षेत्र में विनाश है दूसरा इन प्रणालिकाओं में पित्त का संघनन है जो उनके मुख को अवरुद्ध करके पित्तप्रवाहन रोक देता है । अण्वीक्षण करने पर यकृत् में स्पष्टतः कोशामृत्युक्षेत्र ( necrotic area ) दिखलायी देता है तथा उसके चारों ओर परिणाह ( periphery ) पर स्नैहिक विहास ( fatty degeneration ) का एक प्रदेश ( zone ) मिलता है । इस रोग में ज्वर का पर्याप्त वेग पाया जाता है । यदि इस रोग में कुछ लाभ हुआ तो उपशम कणन ऊति के द्वारा होता है और यकृत् कोशाओं का स्थान तान्तव ऊति ले लेती है । यकृत् तथा मूत्र में इस रोग में विश्विती (leucine) तथा दधिकी ( tyrosine ) के स्फट देखने को मिलते हैं ।
अब हम विविध क्षेत्रों में होने वाली कोशामृत्यु के आधार पर इस रोग का वर्णन प्रस्तुत करते हैं—
संवहित विषता
शारीरिक रचना
नाभ्य क्षेत्रीय कोशामृत्यु ( focal necrosis ) - जब रक्त में पर्याप्त उग्र होती है तो यकृत् में स्थान स्थान पर बिना किसी विशेष क्रम का ध्यान रखते हुए कोशामृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । इस प्रकार के विज्ञत मन्थरज्वर, रोहिणी तथा तत्सम व्याधियों के रुग्णों में प्रायः पाये जाते हैं । मृतकोशाओं को भक्षिकोशा इतस्ततः ले जाते हैं और उनका स्थान या तो तान्तव ऊति लेती है या यदि क्षेत्र बहुत छोटा हुआ तो यकृत् के स्वाभाविक कोशाओं का ही पुनर्जन्म हो जाता है जिस अवस्था में नाभ्य मृत्यु को प्राप्त क्षेत्रों का ही पता लगाना भी कठिन पड़ जाता है ।
खडकी या प्रादेशिक कोशामृत्यु ( lobular or zonal necrosis )यकृत की खण्डिकाएं ३ प्रदेशों में विभक्त की जा सकती हैं जिनमें एक केन्द्रिय प्रदेश की जो अन्तर्खण्डिकीय या यकृत् सिरा के चारों ओर होती हैं, दूसरी जिसे याकृत् धमनी रक्त पहुँचाती है तथा तीसरी परिणाह प्रदेश की जो केशिकाभाजि अवकाश ( portal spaces ) का परिसीमन करती है । इस प्रकार ३ प्रदेशों में ३ प्रकार की खण्डकाएं होती हैं; केन्द्रिय खण्डिका मध्यप्रदेशीय खण्डिका तथा परिणाह प्रदेशीय खण्डिका । इन तीनों खण्डिकाओं में से किसी एक के यकृत् कोशाओं की मृत्यु होती है इस कारण तीन प्रकार की प्रादेशिक कोशामृत्यु देखी जाती है ।
For Private and Personal Use Only