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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
१३७ दोनों अवस्थाओं में सर्वकिण्वी सिकुड़ जाती है और उसके कोशा अपुष्ट हो जाते हैं। कभी कभी तन्तूत्कर्ष के साथ ग्रन्थि की आकारवृद्धि भी देखी जा सकती है। ये सब तान्तवीय अवस्थाएँ यकृद्दाल्युत्कर्ष से मिलती जुलती ही होती हैं।
केवल शोणवर्णोत्कर्ष को छोड़कर जहां तन्तत्कर्ष का कारण शोणायसि कणों का होना है । अन्यत्र जीर्ण सर्वकिण्वीपाक का कारण क्या है यह ज्ञात नहीं हो सका।
जीर्ण सर्वकिण्वीपाक के उपरान्त सर्वकिण्वीय कर्कटार्बुद होता हुआ प्रायः देखा जाता है।
आयुर्वेद की दृष्टि से विचार करने पर हम देखते हैं कि जब पित्त (bile ) कफ (सर्वकिण्वी यूष ) में मिलता है और जो भोजन करने के तत्काल बाद था जब वह जीर्ण होना प्रारम्भ करता है वह काल होता है तथा अत्यधिक शूल उत्पन्न होता है । यह अत्यधिक भयानक व्याधि है । यदि हम परिणामशूल नामक प्रकरण के इन शब्दों पर विचार करें तो हमें बहुत कुछ प्राप्त हो जावेगा
स्वैनिंदानैः प्रकुपितो वायुः संनिहितस्तदा । कफपित्ते समावृत्य शुलकारी भवेद्बली ॥ भुक्ते जीर्यति तच्छूलं तदेव परिणामजम् । तस्य लक्षणमप्येतत्समासेनाभिधीयते ।।
यह रोग नवीनों में अत्यधिक भयानक माना है और प्राचीनों ने भी इसे महागद और दुर्विज्ञेय कहा हैबलासः प्रच्युतः स्थानात्पित्तेन सह मूच्छितः । वायुमादाय कुरुते शूलं जीर्यति भोजने ॥ कुक्षौ जठरपार्थेषु नाभौ बस्तौ स्तनान्तरे । पृष्ठमूलप्रदेशेषु सर्वेश्वेतेषु वा पुनः ।। भुक्तमात्रेऽथवा वान्ते जीर्णेऽन्ने च प्रशाम्यति । षष्टिकव्रीहिशालीनामोदनेन विवर्धते ॥ तत्परिणामजं शूलं दुर्विज्ञेयं महागदम् । तमाहू रसवाहानां स्रोतसां दुष्टिहेतुकम् ॥ केचिदन्नद्रवं प्राहुरन्ये तत्पक्तिदोषतः । पक्तिशूलं वदन्त्येके केचिदन्नविदाहजम् ॥
(१२) वृक्कों पर व्रणशोथ का परिणाम वृक्कों पर व्रणशोथ का क्या परिणाम होता है इसे समझने के पूर्व सर्वप्रथम हमें वृक्करचना और उनके व्यापार का कुछ ध्यान कर लेना पड़ेगा। क्योंकि आगे जो कुछ लिखा जावेगा वह सब इतना जटिल है कि विना इस सम्बन्ध के समझे उसका सरल होना और समझ में आना पर्याप्त कठिन हो जावेगा।
वृक्कों की शारीररचना की इकाई को वृक्काणु ( nephron ) कहते हैं। एक वृक्काणु में निम्न भाग होते हैं
१. जूट (glumerulus ) २. आदि प्रावर ( Bowman's capsule ) ३. नालिका ( tubule )
जूट के ऊपर आदि प्रावर चढ़ा होता है जो एक प्रकार का वाहिनीगुच्छ (vascular tuft ) बन जाता है जिसके साथ नालिका लगी होती है। नालिका के भी ३ भाग होते हैं एक कुन्तल ( spiral ), दूसरा अवरोही ( descending ) और तीसरा
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