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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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आन्त्रिक ज्वरदण्डाणु तथा अण्यान्त्रिक ज्वरदण्डाणु के द्वारा रोग होने पर आम्लिक होती है पर यदि मालागोलाणु या गुच्छगोलाणु रोग के कारण हुए तो क्षारीय होती है; कभी-कभी एक ही रोग में रोगकारी जीवाणु तथा प्रतिक्रिया दोनों बदल जाते हैं ।
४. यह रोग श्लेष्मलकला और उपश्लेष्मलकला तक ही सीमित रहता है; जहाँ व्रण बन जाता है वह पेशी तक रोग पहुँच सकता है परन्तु बस्तिपेशी इस रोग में कोई भाग लेती हुई नहीं देखी जाती है ।
५. मिश्र देश में बिल्हार्जियासिस नामक रोग में बस्ति प्राचीर में जब स्त्रीपुंस ( schistosoma ) के अण्डे ( ovoid ) अपना मार्ग बनाते हैं उस समय वे अण्डे जिनमें शूक ( spike ) होते हैं बस्ति की श्लेष्मलकला में व्रणशोथात्मक पुर्वंगक ( inflammatory polyps ) उत्पन्न कर देते हैं जिसके कारण एक प्रकार का अनुतीत्र बस्तिपाक उत्पन्न हो जाता है । इसमें रक्तमेह, शूल, बार-बार मूत्रत्याग आदि होते हैं परन्तु पूय बहुत कम या बिल्कुल नहीं मिलता । मूत्र के मथित्र में अण्डे देखे जा सकते हैं ।
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जीर्ण बस्तिपाक — इसमें बस्ति के प्रसरतन्तूत्कर्ष के सभी चिह्न मिलते हैं । इस रोग में सभी स्तर अन्तर्भूत हो जाते हैं । श्लेष्मलकला पेशीस्तर से बँध जाती है और बहुत फैली हुई ( तत ) दिखाई देती है, वह चिकनी और अपुष्ट भी हो जाती है अन्यथा अधिच्छद के नीचे की कणन ऊति इसमें अनेक परमपुष्ट कूट ( ridges ) और वलियाँ ( rugose ) उत्पन्न कर देती है जो सब इस रोग में एक होकर कला को चिकना बना देती है । श्लेष्मलकला में अनेक पुर्वंगक ( polyps ) उत्पन्न हो जाते हैं । श्लेष्मकला का रंग उड़ जाता है वह गुलाबी न होकर आपीत हो जाता है । उसमें कहीं-कहीं पर बभ्रु वर्ण की शोणायसि संचित हो जाती है उसके संचय का कारण उपश्लेष्मलकला में रक्तस्राव का होना है । यदि मूत्र के स्राव में बाधा रहे तो पेशीतन्तुपुंज ( muscle fasciculi ) में अनेक स्थलों पर वर्मन ( herniation ) हो जाता है ।
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यदि बहुत समय तक बस्ति श्लेष्मलकला पर प्रक्षोभ होता है तो अन्तर्वर्ती कोशाओं वाले अधिच्छद ( transitional cell epithelium ) में समपुष्टि ( metaplasia ) होने लगती है जिसके कारण एक विशिष्ट स्तरितशल्काधिच्छद ( typical stratified squamous epethelium ) बन जाता है । वह भी आगे चल कर परमपुष्ट हो जाता है जिसके कारण श्लेष्मलकला में इतस्ततः श्वेत सिध्म (white patches) उत्पन्न कर देता है जिसे बस्तीक सितचय ( vesical leucoplakia ) कहते हैं ।
मूत्रनालपाक ( Urethritis )
मूत्रमार्ग, मूत्रनाल या मूत्रप्रसेक यूरेथा के विभिन्न नाम हैं । मूत्रनाल में प्रमेह या उष्णवातगोलाणु (gonococci ) के द्वारा जो व्रणशोथ होता है वह बहुत महत्त्वपूर्ण होने
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