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- विकृतिविज्ञान प्राचीरों में पाक होकर तन्तूत्कर्ष होने से रक्त-संवहन में बाधा पड़ना दूसरा है, इस प्रकार उण्डुकपुच्छपाक के उत्पादक अनेक कारण हो सकते हैं। जो लोग अमरूद के बीज या अन्य गुठलियों के निगलने को इसका कारण मानते हैं वे अधिक महत्त्व नहीं रखते। - अब हम उण्डुकपुच्छपाक के विविध नैदानिक भेदों का वर्णन करते हैं
तीव्र उण्डुकपुच्छपाक-जब यह व्रणशोथ सौम्य ( mild ) अवस्था में रहता है तब वह श्लेष्मलकला और उसके उपश्लेष्मल भाग तक ही जाता है तथा उदरच्छद पर प्रभाव नहीं पड़ता। श्लेष्मलकला सूज जाती है, फूल जाती है और रक्तमयी हो जाती है तथा उससे बहुत सा श्लेष्मा टपकना प्रारम्भ हो जाता है। उपश्लेष्मल स्तर में प्ररस कोशाओं की भरमार हो जाती है, लसीकोशा तथा बहुन्यष्टिकोशा भी भर जाते हैं। जब तीव्रावस्था शान्त हो जाती है तो फिर उपसिप्रियकोशा इन कोशाओं का स्थान भर लेते हैं। साधारणतः यह अवस्था समाप्त होकर उसकी अनुतीवावस्था आरम्भ हो जाती है। उदर के दक्षिण अधो भाग में जो तीव्रशूल उग्रावस्था में उत्पन्न हो जाता है वह घट कर हलका हलका दर्द बन जाता है जो थोड़े थोड़े काल पश्चात् दौरे का रूप धारण कर सकता है। इस अवस्था में शनैः शनैः उण्डुकपुच्छ में तन्तूत्कर्ष होने लगता है तथा वह मोटी पड़ती जाती है । इसके कारण उसका विवर अवरुद्ध हो जाता है और बहुत सा स्राव भी रुक कर उसे और फुला देता है ( mucocele )। जिसके कारण और गम्भीर स्वरूप का प्रभाव उण्डकपुच्छ के सब स्तरों तथा उसके ऊपर के उदरच्छद के भाग पर भी पड़ता है उन सब में पूयोत्पत्ति हो जाती है । श्लेष्मलकला व्रणों से भर जाती है। ऊतियों का विनाश उदरच्छदकला तक जा पहुंचता है रक्तस्राव और अत्यधिक रक्ताभरण मिलता है। प्राचीरों में बहुन्यष्टियों की बेशुमार भरमार हो जाती है। उदरच्छदीय स्तर भी अवरुद्ध हो जाता है उसमें सन्तिवमत् या तन्विपूयीय (fibrino purulent ) निःस्राव छा जाता है। रक्त का परीक्षण करने पर उसमें ९५% तक बहुन्यष्टिकोशा देखे जाते हैं। व्रणशोथ और सपूयता के परिणामस्वरूप उण्डुकपुच्छीय विद्रधि ( appendicular abscess ) बन जा सकता है जो पहले तो अपने उदरच्छदीय बन्धनों तक सीमित रहता है फिर उन्हें भी तोड़ सकता है। इसके कारण उदर का दक्षिण अधोभाग भर जाता है नाडी की गति बढ़ जाती है पर तापांश का बढ़ना आवश्यक नहीं है।
सकोथ उण्डुकपुच्छपाक (Gangrenous appendicitis ) .. सकोथ उण्डुकपुच्छपाक का प्रधान कारण उण्डुकपुच्छ की रक्तपूर्ति में बाधा का होना है जो निम्न कारणों से होती है :
१. उण्डुकपुच्छ का अपनी धुरी पर ऐंठ जाना ( torsion ) २. तान्तव अभिलागों ( fibrous adhesions ) के कारण उण्डुकपुच्छ का - सिमट जाना।
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