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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव पश्चिमी विद्वानों ने मुखपाक के निम्नभेद स्वीकार किए हैं:१-परिस्रावी सर्वसर ( catarrhal stomatitis ) २-श्लैष्मिक सर्वसर ( aphthous stomatitis) ३-श्वेतमुखपाक ( thrush) ४-सकोथ मुखपाक या महाशौषिर (gangrenous stomatitis or
cancrum oris ) ५-सव्रण सर्वसर या पारदीय सर्वसर (ulcerative stomatitis or
mercurial stomatitis ) :: ३-सशोफ सर्वसर ( Vincent's angina)
परिस्रावी सर्वसर में मुख के अधिच्छद में पूयिक व्रणशोथ हो जाता है इसका कारण मुख में व्रण या दन्तविधि का होना, अतिशय धूम्रपान अथवा विबन्ध और अजीर्ण हुआ करता है। यह सर्वसर सर्वप्रथम होता है । इसमें मुख की श्लेष्मलकला में रक्ताधिक्य हो जाता है और अनेक फूले हुए सिध्म देखे जाते हैं मुख से गाढ़े और पिच्छिल लालारस का स्राव होता है थोड़े समय पश्चात् सिध्मों पर का अधिच्छद उखड़ जाता है तथा वहाँ व्रण तथा घाव हो जाते हैं।
श्लैष्मिक सर्वसर में मुख में श्वेत वर्ण के सिध्म बन जाते हैं उनमें से श्वेतरस का स्राव होता है श्लेष्मलकला लाल हो जाती तथा सूजी रहती है। थोड़े समय बाद श्वेतवर्ण के व्रण यहाँ पर बन जाते हैं।
- श्वेतमुखपाक श्लैष्मिक सर्वसर के आगे की अवस्था है इसमें श्वेत सिध्म मिल कर बड़े बड़े सिध्म जिह्वा ओष्ठों या गले में देखे जाते हैं। शिशुओं में दन्तो
भेदकाल में यह प्रायः हो जाता है ऐसा लगता है मानो दही जम गया हो। इसका कारण ओईडियम एल्बीकेन्स (oidium albicans ) नामक पराश्रयी जीवाणु बतलाया जाता है जो खट्टे दुग्ध में रहता है। इस रोग के कारण लसीग्रन्थियाँ बढ़ जाती हैं पर वे कभी सपूय नहीं होती। दुर्बल वयस्कों में भी यह रोग मिल सकता है।
सकोथ मुखपाक ओष्ठ और कपोलों की मृदु ऊतियों का विनाशक यह रोग आजकल बहुत कम देखा जाता है। यह दीन बालकों में जो नगरों के दुर्गन्धपूर्ण स्थलों में निवास करते हैं उसमें उपसर्ग द्वारा होता हुआ देखा जाता रहा है पहले कपोल के भीतरी भाग में छिल जाने से एक धूसर वर्ण का निर्मोक ( slough ) बन जाता है उसमें से दुर्गन्धयुक्त स्राव निकलता है कोथ आगे फैलता जाता है कपोल फूल जाता है तन जाता है और चमकने लगता है, ऊपर की त्वचा काली पड़ जाती है धीरे धीरे निर्मोक बन बनकर मृदु ऊतियाँ नष्ट होती जाती हैं और रोग ओष्ठा, जिह्वा, तालु और हनु की अस्थियों तक पहुंच जाता है। इस रोग में विषरक्तता के लक्षण प्रायः मिलते हैं । रोग का कारण पूयजनक मालागोलाणु (streptococcus pyogenes), विंसेंट का अधिकुन्तलाणु ( Vincent's spirillum ) तथा कुन्तलाणु (spirochaetes) हो सकते हैं।
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