________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१००
विकृतिविज्ञान
सण सर्वसर अन्य मुखपाकों की अपेक्षा अधिक उग्र व्याधि है । इसका उद्भव दुर्बल व्यक्तियों को तीव्र ज्वरों में या पूयिक दन्तरोगों में हो जाता है। जो लोग अशुद्ध पारद का उपयोग करते हैं या उससे बने लवण लेते रहते हैं उन्हें भी यह सर्वसर हो सकता है इसीलिए इसका एक नाम रसजन्य सर्वसर ( mercurial stomatitis ) भी है । धूमपान अत्यधिक करने वाले व्यक्तियों को पारदयुक्त पदार्थ सेवन के पश्चात् यह रोग लगते हुए प्रत्यक्ष देखा जाता है । पहले लालास्रावाधिक्य होता है फिर दन्तमांस ( मसूड़ों) में शूल होता है वे बैंगनी रंग की रेखा से युक्त हो जाते हैं उनसे रक्त निकलता है दांत भी ढीले होकर गिर जा सकते हैं। हनु का नाश हो सकता है और जिह्वा में भी रसजन्य जिह्वापाक उत्पन्न हो सकता है। कपोलों और ओष्ठों की श्लेष्मलकला पर छोटे पीले पूयिक व्रण उत्पन्न हो जाते हैं मुख से दुर्गन्ध आती है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सशोफ सर्वस भी एक उग्र व्याधि है इसके कारणभूत विंसेंट का अधिकुन्तलाणु( Vincent's spirillum ) तथा तर्कुरूप दण्डाणु (bacillus fusiformis) दो जीवाणु होते हैं । इसमें मुख की श्लेष्मलकला बहुत सूख जाती है मुख शुष्क और बालू भरा सा हो जाता है यदि चिकित्सा न हुई तो दन्तमांस और मुख के तल पर व्रण बन जाते हैं ।
दन्तमूलपाक या दन्तमांसपाक ( Gingivitis )
मसूड़ों ( gums ) में व्रणशोथ होने पर वे फूल और सूज जाते हैं उनसे रक्त बहने लगता है शूल होता है और पाक होकर पूय का स्राव भी देखा जाता है | दांतों में गन्दगी, सितकोशोत्कर्ष, स्कर्वी, पारदं विष आदि कारणों से दन्तमूल या दन्तमांस में पाक हो जाता है । अधिक उग्र अवस्था में दाँत हिल जाते हैं और गिर पड़ते हैं । सुश्रुत ने दन्तमूलगत १५ व्याधियों का वर्णन किया है इनमें प्रथम ८ दन्तमूल पाक की विभिन्न अवस्थाओं को ही प्रकट करती हैं। इनका वर्णन निम्न है :
---
१. शीताद -
शोणितं दन्तवेष्टेभ्यो यस्याकस्मात् प्रवर्तते । दुर्गन्धीनि सकृष्णानि प्रक्लेदीनि मृदूनि च ॥ दन्तमांसानि शीर्यन्ते पचन्ति च परस्परम् । शीतादो नाम स व्याधिः कफशोणितसम्भवम् ॥ यह पारद विषजन्य या स्कर्वी ( जीवति ग हीनता ) जन्य मुखपाक है ।
२. दन्त पुप्पुटक
दन्तयोस्त्रिषु वा यस्य श्वयथुः स रुजो महान् । दन्तपुप्पुटको ज्ञेयः कफरक्तनिमित्तजः ॥ ( gum boil ) है ।
मांस ३. दन्तवेष्ट—
स्रवन्ति पूयरुधिरं चला दन्ता भवन्ति च । दन्तवेष्टः स विज्ञेयो दुष्टशोणितसंभवः ॥
इसे पूयात्मक दन्तमूलपाक ( suppurative gingivitis ) या पायोरिया
ऐल्वियोलैरिस ( Pyorrhoea alveolaris ) कहते हैं ।
For Private and Personal Use Only