________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १०३ ३. जीर्णबाह्य जिह्वापाक (chronic superficial glossitis) __ यह जिह्वा की श्लैष्मिककला का जीर्ण व्रणशोथ है यह जब होता है तभी कपोलों और ओष्ठों की श्लैष्मिककला में भी पाक होता है। इसका कारण तृतीयक फिरंग, पूयिकदन्त, अत्यधिक तम्बाकू सेवन, मसालेदार पदार्थों का अतिशय प्रयोग, आसवों या सुरा का सेवन साथ में अजीणं या वातरक्त की उपस्थिति इस रोग को उत्पन्न करती है। इस रोग की विभिन्न अवस्थाएं जिह्वा पर एक ही काल में देखी जाती हैं यह रोग ४० से ६० वर्ष की अवस्था में पुरुषों में होता है और कर्कटार्बुद (कैंसर) का कारण बन सकता है।
इस रोग की निम्न अवस्थाएं देखी जा सकती हैं
प्रथमावस्था-इसमें अधिच्छद के भीतरी भागों में पाक हो जाता है, उसमें गोल कोशाओं की भरमार हो जाती है, थोड़ा तन्तूत्कर्ष भी मिलता है। इसका परिणाम यह होता है कि जिह्वांकुर सूज जाते हैं जिह्वातल लाल हो जाता है और उसमें अधिरक्तयुक्त सिध्म बन जाते हैं। ये सिध्म धीरे धीरे मिलकर एक हो जाते हैं।
द्वितीयावस्था-कुछ कालोपरान्त जिह्वातल की अभिवृद्धि ( overgrowth) तथा कदरीकरण ( cornification ) होने लगता है जिसके कारण जिह्वातल मोटा, पारान्ध, कठिन, , उठा हुआ, श्वेत तथा कठिन पट्ट ( hard plaques) युक्त हो जाता है और लाल सिध्म मिट जाते हैं। नये सिध्म श्वेत तथा चौकोन या दीर्घवृत्ताकार ( oblong-shaped ) हो जाते हैं । इस अवस्था को सितपट्टता (leucoplakia), या सितशृङ्गोत्कर्ष ( leucokeratosis) कहते हैं। इसके कारण जिह्वातल श्वेत, मोटा और कठिन हो जाता है। ___ तृतीयावस्था-द्वितीयावस्था के उत्सेधयुक्त अधिच्छद को पुष्ट करने के लिए जितने रक्त की आवश्यकता होती है वह उसे नहीं मिल पाता इस कारण कुछ कालोपरान्त यह उत्सेध कहीं कहीं से गिरने लगता है और उसके नीचे चिकनी, लाल, अंकुररहित, कच्ची चमकवाली ( raw-glazed ) सतह रह जाती है। शेष भाग में द्वितीयावस्था रहती हैं।
चतुर्थावस्था-तृतीयावस्था के पश्चात् जिह्वा पर व्रण, पाट ( cracks ), विदर (fissures) बनने लगते हैं। जिह्वा के मध्य भाग में एक विदर होता है उसकी शाखा से अन्य पाट बनते हैं जो पर्याप्त गहरे होते हैं। गहराई का कारण नवीन तान्तव जति जो गहरे स्तरों में बनती है उसका संकोच है।
पंचमवस्था-इस अवस्था में पाटों और विदरों में कर्कटार्बुद का जन्म होता है ।
उपरोक्त पांची अवस्थाएं जिह्वा के विभिन्न भागों में एक साथ भी देखी जा सकती हैं। ____४. जीर्ण जीवितक जिह्वापाक ( chronic parenchymatous glossitis ) यह फिरंग की तृतीयावस्था के कारण उत्पन्न गोंदाधुंद के कारण होने वाला प्रकार है जिसका वर्णन आगे यथास्थान होगा।
For Private and Personal Use Only