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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव अत्यधिक मृदु हो जाती है उसकी तरुणास्थि और मांसपेशी विलुप्त हो जाती है उसके स्थान पर तान्तव ऊति का निर्माण होने लगता है। यदि यह तान्तव ऊतिनिर्माण कार्य फुफ्फुस तक में व्याप्त हो गया तो उसके कारण उरःक्षत ( bronchiec. tasis ) तक बन जाता है। ग्रीन का कहना है कि जीर्ण श्वसनीपाक वास्तव में सौम्य उरःक्षत ही माना जाना चाहिए। जिस प्रकार जीर्ण श्वसनीपाक से उरःक्षत होता है उसी प्रकार उरःक्षत से भी जीर्ण श्वसनीपाक (chronic bronchitis ) हो सकता है। ___ वायु कोशाभिस्तरण ( emphysema ) के साथ भी जीर्ण श्वसनीपाक देखा जा सकता है इन दोनों रोगलक्षणों के कारण हृस्क्रिया पर घातक प्रभाव पड़ कर हृद्भेद तक सम्भव हो सकता है। यदि हृदय दुर्बल है तो फुफ्फुसों में पश्चनिपीड ( back pressure ) होने से ऊतियों का पोषण ठीक ठीक न होने के कारण उनमें उपसर्ग की प्रवृत्ति होकर जीर्ण श्वसनीपाक देखा जा सकता है। वास्तव में वायुकोशाभिस्तरण, हृद्भेद तथा जीर्ण श्वसनीपाक की एक विशेषत्रयी ( triad ) है। किस कारण यह अवस्था बनती है यह कहना सम्भव नहीं है कुछ इसे कफरक्त या अनूर्जाजन्य मानते हैं जिसमें फुफ्फुसगोलाणु या मालागोलाणु शोणहरित अनूजन (allergen ) वत् कार्य करते हैं।
श्वसनीपाक के दो प्रकार और देखे जाते हैं जिनमें एक को केशाल श्वसनीपाक ( capillary bronchitis ) कहते हैं यह वास्तव में श्वसनिकाओं ( bronchioles ) का पाक ( bronchiolitis) कहते हैं इसमें श्वसनिकाओं तथा फुफ्फुस के वायुकोशों ( alveoli ) में व्रणशोथोत्पत्ति हो जाती है। उसी से फिर श्वसनीफुफ्फुसपाक ( broncho-pneumonia) बन जाता है। ___ दूसरा तन्त्विमत् श्वसनीपाक ( fibrinous bronchitis ) या अभिघटन श्वसनीपाक ( plastic bronchitis) कहलाता है। इसमें श्वासावरोध के अनेक आक्षेपयुक्त आक्रमण होते हैं श्वसनियों के विशिष्ट निर्मोक निकलते हैं इसका कारण भी अभी ज्ञात नहीं है।
फुफ्फुसपाक (Pneumonia) यह एक तीव्र स्वरूप का तथा औपसर्गिक रोग है। इसमें फुफ्फुसों में व्रणशोथ के कारण एक स्राव निकलता है जो जम कर फुफ्फुस को घनीभूत कर देता है। यह संघटन या तो एक फुफ्फुस के किसी एक या दो पूरे खण्डों में होता है (खण्डीय फुफ्फुसपाक-lobar pneumonia) या ये दोनों फुफ्फुसों के खण्डों में थोड़ा इधर थोड़ा उधर करके कई स्थान पर होता है (खण्डखण्डीय फुफ्फुसपाकbroncho pneumonia)। अब हम इन दोनों प्रकारों का पृथक् पृथक् वर्णन करते हैं:
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