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विकृतिविज्ञान उस पर पहुंकाओं का चिह्न अङ्कित हो जाता है। फुफ्फुस पूर्णतः सान्द्र ( solid ) हो जाता है उसके एक टुकड़े को काट कर जल में डालने से डूब जाता है (स्वाभाविक फुफ्फुस जल में तैरता रहता है) उसे किसी भी प्रकार से फुलाया नहीं जा सकता है। न उससे कोई ध्वनि (crepitation ) ही निकलती है। उसे थोड़ा दबाने से टूटने या फटने लगता है वह वायुरहित होता है उसे निचोड़ने से बहुत कम तरल निकलता है। काटने पर काटा हुआ धरातल दानेदार दिखाता है उसका कारण तन्त्वि के छोटे छोटे निग ( plugs ) वायुकोषों से आगे की ओर निकले रहते हैं जिन्हें वे भरे रहते हैं। व्रणशोथयुक्त क्षेत्र के किनारों का खण्डकरण ( lobulation ) नहीं होता न बाह्य एकवर्ध्यक्ष ग्रन्थिकाओं ( racemose nodules ) का ही कुछ चिह्न मिलता है जो यह प्रकट करे कि उपसर्ग श्वसनी से फैल रहा है। फुफ्फुस का वर्ण असित आरक्त बभ्रु (dark reddish brown) होता है। कहीं कहीं बीच में श्वेत या धूसर वर्ण के सिध्म भी मिल जाते हैं। फुफ्फुस का इतना ठोसपन देखकर ऐसा लगता है कि मानो यह लाल रंग का यकृत् ही हो । इस लाली के कारण केशाल प्राचीरों के फटने से गये रुधिर की उपस्थिति हो सकती है। ___ फुफ्फुस के ऊपर का फुफ्फुसच्छद (pleura) अधिक रक्तमय, मन्द तथा तन्त्विमत् स्राव से आच्छादित रहता है। फुफ्फुसच्छद पाक (pleurisy ) के कारण पावशूल की उपस्थिति इतनी सामान्य वस्तु हो गई है कि उसे फुफ्फुसपाक का एक उपद्रव न मानकर उसका ही एक आवश्यक भाग मान लेना पड़ता है। रोगी सांस लेने में डरता है क्योंकि सांस के साथ ही अत्यधिक शूल होता है खाँसने में तो यह शूल अत्यधिक कष्ट देता है इसी को भावमिश्र ने तीर से आहत के समान तोदयुक्त शूल कहा है। इस शूल के कारण रोगी अत्यधिक निस्तेज हो जाता है तथा उसकी निद्रा विदा हो जाती है। __थूक का रंग मोर्चा लगे लोहे जैसा (rusty) कहा है 'रक्तं ष्ठीवति चाल्पशः' नाम से जो वर्णन है उसका अर्थ लालवर्ण के थूक से ही अभिप्राय है यद्यपि लाली का कारण स्वयं रक्त के लालकण ही हैं:
The sputum in this stage is rusty'owing to the presence in it of blood cells from the pulmonary exudate.
-A Manual of Pathology. इस थूक में असंख्य कोशाबाह्य फुफ्फुसगोलाणु पाये जाते हैं । थूक की मात्रा बहुत थोड़ी होती है, वह इतना शुष्क और पिच्छिल होता है कि उसे निकालने के लिए बड़ी देर तक कष्टदायक कास उठती रहती है।
फुफ्फुसपाक की द्वितीयावस्था में मृत्यु प्रायः नहीं हुआ करती। - धूसर सघनावस्था या धूसर यकृतीभवन की अवस्था-कर्कटक सन्निपात की यह तृतीयावस्था है यह पांचवें से आठवें दिन तक देखी जाती है इस अवस्था में
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