________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव गुडौल का कथन है कि इस प्रक्रिया में आन्तरचोल की प्रत्यस्थ शल्किका ( elastic lamina) में काचर विहास (hyaline degeneration) होने लगता है जब कि वहां के कोशाओं में प्रगुणन चल पड़ता है। इस काचर पदार्थ के मान्तर प्रदेश में अन्तश्छद का एक नूतन स्तर चढ़ जाता है इसी में पेशी के तन्तु भी प्रविष्ट हो जाते हैं। इस सब का परिणाम यह होता है कि एक बड़े मुख की धमनी के भीतर एक छोटे मुख वाली धमनी का निर्माण होने लगता है।
फुफ्फुसाभिगा धमनी की छोटी शाखाओं में यही व्याधि लगने से सम्पूर्ण फुफ्फुस में तन्तूत्कर्ष हो जाता है। हृदय का दक्षिण भाग अत्यधिक पुष्ट हो जाता है । इस सब के कारण अत्यधिक श्वासावरोध एवं श्यावता ( cyanosis ) होने लगती है
और पूरण निमित्त रक्त में अतिरक्तकोशता (polycythaemia) हो जाती है । इस रोग को अयेी का रोग (Ayerza's disease) कहते हैं तथा यह क्यों होता है इसे बताना अभीतक पूर्णतः कठिन है।
सिरापाक ( Phlebitis) सिराओं में पाक होने से सबसे बड़ी आशंका उनके अन्दर घनास्रोत्कर्ष ( thrombosis) होने की रहती है जिसके कारण फौफ्फुस या याकृत् अन्तःशल्य बन सकते हैं। यदि जिस क्षेत्र में पूयन हो रहा हो और वहीं की सिरा में घनास्रोत्कर्ष हुआ हो तो वह घनास्त्र दूषित होकर टूट फूट जाता है और उसके टुकड़े जहां जहां अन्तःशल्य बनकर पहुंचते हैं वहीं वहीं विद्रधियां उत्पन्न कर देते हैं। सपूय अन्नपुच्छ पाक में जब केशिकाभाजिसिराजन्य पूयरक्तता (portal pyaemia) हो जाती है तो यकृत् में अनेक विद्रधियों का कारण घनास्र का दूषित हो कर टूक टूक हो यकृत् में अन्तःशल्य (emboli) बनना है। बालकों के तीव्र मध्यकर्णपाक में पार्श्विकाख्या सिरा परिखा (lateral sinus) में दूषित धनास्रोत्कर्ष होने के कारण दूषित फौफ्फुस ऋणास्र बनते हैं। आन्त्रिक ज्वर में सिराओं में वाहिनियों के भीतर रक्त का आतञ्चन बहुधा हो जाता है । वातरक्त में दीर्घोत्ताना सिरा में पाक मिलता है।
एक सिरापाक चलायमान सिरापाक (phlebitis migrans ) कहलाता है इसमें बाह्या सिराओं ( superficial veins) में पाक होने लगता है उनमें सूजन एवं शूल एक के पश्चात् दूसरे स्थान पर रह रह कर उठता रहता है । इसके कई कारण देखने में आये हैं जिनमें उपसर्ग, वातरक्त, कफरक्त तथा कर्कटार्बुद (फुफ्फुस, आमाशय या गर्भाशय के कर्कटार्बुद) मुख्य हैं।
सिरापाक साधारण और औपसर्गिक दो प्रकार का होता है। साधारण सिरापाक का कारण कोई सा आघात हो सकता है। प्रसवकाल की मूढगाभिक कठिनाइयों से शिशु की अस्थियों में भग्न होने के साथ साथ यह प्रायः मिलता है। इस पाक में सिरा स्पर्श से रज्जु के समान प्रकट होती है, उसमें शूल होता है। औपसर्गिक सिरा पाक गम्भीर व्याधि है इसी के कारण भनेक विद्रधियां इतस्ततः देखी जाती हैं। यह
७, वि०
For Private and Personal Use Only